Friday, 16 August 2013

दो  टांगों  पे  लड़खड़ाता  है  ,  पर  चाहता  है  चतुर्भुज  होना ,
दो  बूँद  हलक  में  जाते  ही  ,  धरा  चाहता  है  ,  इक  कोना !!

चले  हैं  तो  ,  हर  शै  से  ,  कुछ  ले  के  चलेंगे  ,
उन्हें  बख्शेंगे  इज्ज़त  ,  गुर ,  जिनसे  मिलेंगे !!

सैय्याद  ने  पर  काट  लिए  इसका  किसे  गम ?
हमको  तो  महज़  देखना  है  ,  किसके  लिए मरे  हम ?
समझते  ही  नहीं  सैय्याद  , तड़पना  क्या  है  ,
मौत  के  गलियारों  से  गुज़रना  क्या  है  ,
वो  तो  बस  जानता  है  ,  लुत्फ़  है  शिकार ,
नहीं  जानता  कि  वो  भी  है इक  शौक का शिकार !!

Thursday, 15 August 2013


उम्र  में  शामिल पल  पल , कहाँ  इक  दिन  जिया ?
कहाँ  मौत  आई  अभी , डर  से  काटे  जो  पल  ,
और  जो  कौतुहल  रहा  बीच  में  ?  उसको  किसने  जिया ?
फिर  क्यों  शकुन  अपशकुन  ?  क्यों  ज्योतिषी  के  दर हम ?
और  देखना  चाहे  खेल  का  अंत  खेल  से  पहले  ही  ?

Wednesday, 14 August 2013

बेरुखी  के  आलम  में  , खुशियाँ खुद से , दरकिनार  हुईं ,
ऐसी  नफरत  क्या ? सलवटें ललाट की , सदाबहार हुईं !!
मंजधार   में  फंसना  ,  और  बच  के  निकल  जाना  ,
जानता  है  वो , मुश्किल  से , हंस  के  निकल  जाना !!

निभा  लेना  इक  रीत  फिर ,
फिर  तिरंगा  फहरा  लेना  ,
वर्ष  में  आज  के  दिन  ,
देशभक्ति  के  गीत  सुन  लेना ,
बाँट  देना  फिर  कुछ  पदक ,
कुछ  सच्चे  ,  कुछ  झूठे ,
देशभक्तों  में  ,  नाम  लिखा  लेना ,
पर  दिल  में  जो  जज़्बा  है ,
दिखता  है  ,  बस  नाम  को ,क्योंकि  ,
राष्ट्र गीत , तरसता  है , सम्मान  को  ,
चुभता  हो  अपमान  तो ,  और  ,
कभी  मिले  फुर्सत , तुम , खड़े  हो  लेना !!
सताए हुए  किस्मत  के  सही , पर  जिंदगी  से  न  हारे  हैं ,
कुछ  ऐसे  भी  इंसान  हैं  , जुड़े  पेट  से , भूख  से  न  हारे  हैं !!

वो  चंचल , मृग  छौने , फुदकते  झुरमुटों  से  ,
मेरे  दिल  को  नचाने  निकले  ,
और  मैं  जानवर  बन  ,
प्रकृति  को  लूटने  का  मन  बना , निकला ,
छि ! मैं  कितना  जानवर  निकला  !!

Monday, 12 August 2013

ढूंढते  रहे , जीवन  भर  संकल्प  कोए  ,
बिना  साधन  भूख  , हिवड़े में  संजोये  ,
बीनते  रहे  कूड़ा  कर्कट  सड़क  से ,
और  झिड़कियों  का  दर्द  नयनों  को  भिगोये ,
नंगे  पैरों   में न कांटे , न  तपती  रेत ,
जलन  कोई  दे  गया  तो  , बस इंसानी  भेद !!

अब  तो  मंगल  पे  भी  अमंगल  हो  गया ,
इक  लाख  इंसान  ?   न  लौटने  का  इरादा  ले ,
टिकट , स्पेस  एजेंसी   में   लेने  गया  !!

कुछ  चर्चे  हैं  , सुना  तेरे  नाम  के ,
पर  चाल  धीमी  न  हो  , सुन  शान  से ,
न  दिमाग़  ऊपर ,  न  असर  हो  काम  पे ,
तो  ये  चर्चे  ,  सदा  रहेंगे  , तेरे  सुन्दर  काम के  !!


जो  कुछ  शहर  में  ख़ास  मेरे ,  सब  किया  है  आम  ने ,
और  उस  आम  को  रुतबा  ख़ास  ,  बख्शा  तो  बस  काम  ने  !!
कुछ  नया  करने  की  चाह  ,  और  उड़ , परिंदा  वो  गया  ,
परवाह  किसे  , हासिल  मंजिलें  होंगी  ?  या  घर से  गया  !!
भले  है  स्वप्न  , पर  है  स्वप्न  ,  तो  ये  भी  सही ,
कड़वे  हों  कितने  सच ,  सच , पर  बोलेंगे  हम वही !! 

Wednesday, 7 August 2013

काश  तेरे  पैमाने  , इस   मय   से  भी  हल्के , वज़न  होते ,
हाथ  मेरे  न  उठते , तो  पैमाने , होठों  से  मेरे , लगे  होते !!
उद्घाटन  के  बाद ,
सब  एक  रंग  हो  गये  ,
जैसे  ही  नेता  गये  , 
रंग ,  सब  इमारत  के  ,
फिर  बदरंग  हो  गये !!
 
फैसले   जीवन  के  कुछ  , अब  भी   नहीं  हुए  ,
कौन  अपना  ?  पराया  कौन  ? छंटनी  नहीं  हुए  ,
भ्रमित  ,  तब  भी  थे  ,  और  अब  भी  हैं  ,
स्वार्थ  मेरे  ,  परमार्थ  से  ,  कितने  अलग ? रौशन , नहीं  हुए !!
देखता  हूँ  बहुत  बढ़ा  चढ़ा  ,  सिखा  दो  मुझे  भी  मिनिमाइज़ करना ,
साइज़  को  बेसाइज़  करना  ,  और  बेकार  को  यूटीलाइज़  करना !
पत्नी  जब  चाहे  ,  सब  इलज़ाम  ,  मेरे  सर  कर  देती  है  ,
नौकरानी   ,  सब  आदेश  ,  औंधे  , उंडेल ,  पत्नी  को  नज़र  देती  है !
विरोध  चाहूँ , जब  करना  ,  सुनना  यही  पड़ता  है  ,   अफ़सोस  है  ,
देखते  हैं  हर  बात  ,  आप  बढ़ा  चढ़ा  ,  गवाह  सारा  ,  पड़ोस  है  !
अगर देखता  हूँ  बहुत  बढ़ा  चढ़ा  ,  सिखा  दो  मुझे  भी  मिनिमाइज़ करना ,
साइज़  को  बेसाइज़  करना  ,  और  बेकार  को  यूटीलाइज़  करना !!


कई  बार  ये  गुनाह  हुआ , मन  मसोस  के  रह  गया  ,
सोचा  था  जिनका  तिरस्कार  करना , स्वागतम बोला  गया !
घर  आये  को  इक  बार  तो ,  आओ  ,  बैठो , कहना  पड़ता  है ,
सदाचार  में  मेहमाँ  ,  जो  बोले  ,  सुनना पड़ता  है  ,
इस  अनचाहे  , निबाह  से  ,  नेता  का  कद  ,  तोला  गया ,
जिसे  हम  चाहते  थे  हराना  ,  उसी  का जयकार  ,  बोला गया !
मन  फिर  मसोस  के  रह  गया , क्यों  हम  इम्तिहान  में  ठुस्स  होते  है ?
जब  जो  करना  हो , नहीं  कर  पाते  हैं  , और भोगते  हैं  अगणित  संताप ,
उन्हीं  देवताओं  के  कोप  ,  जिन्हें  अनचाहे  ,  आसन  ,  हम  देते  हैं ,
और  नेता  बन  ,  चकरघिन्नी  सा  ,  जो  हम्हें  नचाते  हैं ,
बहुत  बार  ये  गुनाह  हुआ  ,  मन  मसोस  के  रह  गया ,
चाहते  थे  जिनका  तिरस्कार  करना ,  स्वागतम  बोला  गया !!

Tuesday, 6 August 2013

अब  तो  जड़  हुए  हम , 
शूल  भी  चुभन  नहीं  देते ,
मरते  सैनिक  हर  दिन  ,
हर  दिन  धमकाते  दुश्मन ,
पर  झंडाबरदार  हमारे  , 
वापिस  लड़ने  का  आदेश  नहीं  देते !!
चाहत  से  लदे  पेड़  पे  ,  चमगादड़  से  लिपटे  हम  ,
देख  रहे  हल  बाहर  से  ,  अंतर्मुख  से  अंधे   हम  !!
काश  मेरे  खाल  में  भी  पेड़ों  सी  होती  छाल ,
जिसे  छील  छील  कोई  पढ़ता मेरा  बीता  काल !
जिनपे  अंकित  होती  कुछ  वक्त  की  रीती घड़ियाँ ,
कुछ  उपजाती  जो ,  नयी  पीढ़ी  में  नये  सवाल !
मेरी  भूलों  को  कुरेद  कुरेद  , जूझना , सीखती  उनसे ,
और  दबे  सपनों  का  घुटा  देखती  झूठा  कंकाल  !
काम  आता  मैं  भी  किसी  भोजपत्र  की  किताब  सा ,
दे  जाता  पल  पल  के  इतिहास  का  दबा  पाताल !
पर  ये  सब  केवल  संभावनाएं  हैं  कोरी  , परछाई  सी ,
जो   मृत  हुआ  ,  मृतिका  सा  निश्चल , हुआ  युग  काल  !!

उन  छलावों  को  क्या  कहिये  ,  जो  भगाते  रहे  जीवन  को  ,
मंजिल  पे  खड़े  देखे  तो , राम  ,  जो  चलाते  रहे  जीवन  को !!
कभी  उन  पगडंडियों  को  निहारा  तो , हैरान  हुए  हम ,
बस  में  तो  नहीं  था  ,शुक्र  खुदा ,  पर , लांघ  आये  हम  !!

Monday, 5 August 2013

बूझो  तो  जानो  ,  कह  ,  पीड़ ,  मुखातिब  है ,
और  बेपीर  ,  जान  के  भी  अनजान  खड़ा   है  ,
हाथों    में  भूख    के ,  देख   भीख   कटोरा  , 
राही  फेर  के  मुख  ,  अंधों  सा  खड़ा  है  !!
चूम  लूं  अधरों  को , अये  वीणा , भुजंग  सम ,
पर  मालूम  है  मुझको  तेरे  सपेरे  की  मंशा ,
मुझे  गर्व  है  सच  में  ,  अपनी  चतुराई  पर  ,
पर  छल  बल  में  छलिया ,  तेरा  लेगा  सहारा !!
भला  ऐसे  भी  रूठा  है  कोई  ज़िद  करके ?
हमने  तो  सुना  है  ,  जो  रूठा  , रूठा ,  चाहत  में मनौव्वल  की  !!

Saturday, 3 August 2013

दबते  हैं  जो  ,  बहुत  शोर  करते  हैं ,
पर  तुम्हारे  कान  ,  पैरों  से  बहुत  दूर  होते  हैं  ,
सम्वेदना  हो ,  पाँव  में  तेरे  तो  ,
चीत्कार  ,  धमनियों  से  , दिल  तक  आते  हैं !!
चलते  हैं बेखबर  कभी , अपने  से  भी  हम ,
मन  कहीं  होता  है  अपना , और  कहीं , अपने  कदम !!
बहुत आजमाया  खुदा को ,  पर  खुदा  ,  खुदा  निकला !
और  मैं  उसकी  रियाया  में , उसके  रहम  का  करम  निकला !!

Friday, 19 July 2013

प्यास ?
शायद  समझ  आये  , जब  मीलों  हो , सहारा ,
और ,  सहारा ? न  हो ,  कोई ,
दिखे  बंद  आँख  , पानी ,  और  , खुली  आँख ,  मरीचि ,
और  ,  मिर्च  कटे  दांतों ,
तब   आग ,  दे  जाए  कोई   !!


लकीरें  , खींचता  है  पागल  , रेत  के  माथे ,
और  बेखबर  मौला , किस्मत  बना  रहा  है ,
और  बेखबर  शायर  , गुम  अपने ख्याल  में ,
हाथों  में  आई  किस्मत ,  बना  रेत बहा  रहा  है !!
महफिलों  में  तेरी , मेरा  शुमार  कहाँ  ? बंदिश  हो  बंदगी  पर , ऐसा भी कहाँ ?
हर  रोज़  मंदिर  मस्जिद  , रास्ते  में  आते  , मगर ख्याल  आये  तेरा , ऐसा , है कहाँ ?

Tuesday, 9 July 2013

जीवन  में  सरकता  जाता  हूँ  फिसलन  से  भरी  राहों  में ,
चढ़ता  हूँ , खुदा  होता  हूँ , गिरता हूँ तो सीधा , खुदा  की  बाहों  में  !!

Wednesday, 19 June 2013

रहे खामोश फिर  भी  , बहुत  बोला  ज़माना  ,
तेरी  चुप्पी  से  नादान , है बरहम खुद  ज़माना !!

तुमने  याद  किया  तो  यारो , याद  मुझे  भी  हो  आया ,
इस  दिन  राम  ने  कुछ  करने  को , भेजा था  मुझको  भाया ,
उपलब्धि ? याद नहीं , नित  नियम भी  पूरा न हो  पाया ,
पर  हिम्मत  भाईयो  तुम  सब  की ,  हारे  तुम , अब  भी  नहीं ,
हर  वर्ष  जन्म  दिन  अवसर  पर , भूले  को  राम सिमराया !!



Wednesday, 12 June 2013

इक पलाश  मेरे  अन्दर  भी  जलता  है ,
जंगल  इक  बीहड़  सा मेरे  अन्दर  भी  पलता है ,
मैं  भी  नर्म  गर्म ,  सा  हूँ  इंसान ,
तेरे  इंसान  होने  से ,  इंसान  हो  जाने  का  शौक ,
कभी  मुझे  भी  हो  आता  है  !!
सिरहाने , ज़रा  पैताने  से  भी  मिल  लेना  दोस्त ,
है  सच ,  तू  मुंहलग है  मालिक  का , पर   न भूल ,
तू  भी  उसी  बान से  बुना है  , उसी  डंडे  से  धुना  है ,
उन्ही  पावों  पे  है  नींव तेरी  ,  जिसे  मालिक ने  चुना  है !!
ठहरा  तो  है  ,  बहुत  देर  न  ठहरेगा  सैलाब ,
सब्र  का  बाँध , बांधे  है  गर  कोई , न  जांच ,
तेरी  गुस्ताखियाँ  ,  न  तोड़  दें , संबंधों  की  डोर ,
तो  लगा  अपनी  नादानियों  पे  बाँध , न  जांच !!

Tuesday, 11 June 2013

विज्ञान  ने  गुलाब  को  काँटा  रहित  कर  दिया ,
अब  निर्भय  हो  ,  जितने  चाहे  गुलाब  तोड़िए ,
लेकिन  उगाएगा  कोई  मासूम बेटियों  में  कांटे ?
 वो भी  तो  निर्भय  हों , या  जितनी  चाहे तोड़िए ?
अब  तो  किसे  कारवाँ  की  तलाश  ?
सब  नाभिस्थ  हो  रहे  हैं  ज़माने  में ,
मैं  ,  पत्नी  ,  और  ? तलाश  जारी  ,
कोई  शायद  फिर  मिल  जाए ,  ज़माने  में !!
फैसले  जब  भी  करना , पाँव  ज़मीं  पे , सर  बर्फ  रख ,  करना ,
कदम  आगे  निकालो  तो , पीछे  चार  कदम  ,  जगह  रखना  ,
शंका  होती  है  ,  है  सच ,  पर  उम्मीद  , पे  दम  हरदम , रखना ,
और  निर्भय  हो  , असफलता  पर  , सफलता  का  चिन्ह  रखना !!
दिल  की  बात करें  साकी ? देता  मय , पर आधी  क्यों ?
क्यों  छुपे  नयन  हैं  घूंघट  में , मदभरे  नयन  ? शर्माती  क्यों ?
उसकी  आँखों  की  बेबाकी  ,  देखिये ,
संग  जुबां  की  चालाकी  , देखिये ,
नाच  रहा  है  जग  को  बहलाने  को ,
नज़र  हटते  ही , डंक  मारने  की , अदा देखिये !!

Monday, 10 June 2013

प्राणाधार  पवन  , कब  आंधी  हो  जाए , न  मालूम ,
औ ,  ह्रदय  कंपाती  आंधी , कब सृजन कराये , न मालूम ,
और  न  मालूम  प्रलय  कब ,  स्रष्टा  बन  जाए  ,
तो  छोड़  सभी  पूर्वाग्रह , कब  भाग्य पलट  जाए ,  न  मालूम !! 
क़त्ल  के  सिवा , सब  किया  उसने  ,
दूध  निगला , जहर  उगला , फिर उसने ,
जाने  क्यों  बिसर  जाता  है  इंसान ,
जिस  कोख  से  निकला , नरक  कहा उसने !!

उन सुरमयी  आँखों  में  ,  आज  भी  मेरे  लिए  कुछ  न  था ,
आस  की  बंधी  डोर  में ,  आस  सा , आज  भी  कुछ  न  था ,
वो  पेट  को  पीठ  तक  निचोड़े  ,  ताक़  रही  थी  टुकुर  टुकुर ,
उसकी  झोली  में  भरने  को , रूखे  बोल  सिवा , कुछ  न  था  !!


Sunday, 9 June 2013

इक हल्का  सा  सुख  ,
अये  आईने  मुझे  देदे ,
शर्मिंदा  न  कर  यार  को  मेरे ,
जो  कड़वा  है  सच ,  मुझे  देदे !!
शौक  मेरा  भी  था  ,  रौशन  करूँ  ज़मानें  को  ,
मालूम  किसे ? इस शौक  में  ,  जलना  पड़ेगा  !!
भूलेंगे  तेरी  भी  गुस्ताखियाँ , यारा  ,
अब  तो  सफ़र  मंजिल  के  है  क़रीब  !
मैं  तो  भूला  हूँ  , कामयाबियां  भी  मेरी ,
होके  हल्का , सफ़र से ,  जाएगा  गरीब !
मैं  तो  उनको  हैराँ  हूँ  , निभाया जिसने  भी ,
ऐसा  कुछ  ख़ास  नहीं  था  , अपना  नसीब !
अब  चाहे  अनचाहे , सब  रिश्ते , आर  ही  हैं ,
पार  जायेंगे  वोही , जित कारण लटके  सलीब !! 

किसके  पहलू  में  बसेगा  सुख  चैन  ?
ये  खुदा  का  खेल  है  यारा  ,
और  किस  पहलू  में  है  मेरा  सुख  चैन  ?
वो  खुदा  के  संग  है  यारा  !!
भीगे  हैं  आज  भी  ,  तेरी  हाँ  ना  में  ,
अये बादल , बारिश में  न  सही , पसीने  में !!
इक  शरारत , फिर  मुझे  कर  लेने  दो ,
बरसों  पहले  की , गल्ती  सर  लेने  दो ,
जो  तुमको , कहा  था  सबसे  अलग ,
उस  अलग  को  ,  अब  का  अलग कर  लेने   दो !!

उफ़ , ये  ललाट  पे  भृकुटी ,  और  आँखों  की  लालिमा  तेरी ,
जलाता  क्यों  है  अब  दिनकर  , हम  तो  छांह  भी  चाहते  हैं , तो  बस  तेरी !
क्यों  जताता  है  तू  ,  के  तू  पावर  में  है  ,
यहाँ  तो  मेंढक  भी  डराता  है  तो ,  देते  हैं  उसे  भी  उपमा ,  तेरी  !!

Monday, 3 June 2013

मेरी  आँखों  में  धूल  के  कण   ?
शायद  गुस्ताखियाँ  हैं  मेरी  ,
मेरे  हाथों  को  देते  हैं  मौका  ,
इक  और  भूल  सुधार  का  !!

Thursday, 16 May 2013


संभल  के  चल  मेरी  मौत  के  चाहने  वाले ,
तेरी  आँखों  में  जो  खौफ़ है , दिखता  है  मुझे ,
मेरे  सर  पे  कफ़न  का ,  ज़रा  रंग  भी  देख  ,
वतन  पे  फ़िदा होने  का  शौक़ , नहीं  दिखता  है  तुझे  ?
किसी  के  ख़ैर मक़दम  का  जुनूँ  ,  महंगा  पड़ा   उसे ,
अपनी  ही  जात  के  पैरों  तले  ,  कुचला  गया  वो   ,
उसने  तो  समझा  था  , समा जाना , आँखों  में  पैरोकार  के ,
पर  सब  अंधे  थे  जुनूँ  में ,  आँखों  की  जगह , पैरों  में  समा  गया  वो !!
चुभता  हूँ  इसलिए  कि  , तेज़  भी  हूँ  और  सख्त  भी ,
हर  किसी  की  किस्मत  में  कहाँ ,  काँटा   बनना  ,  और ,
किसी  और  के  हित ,  किसी  और  को , गलती  का  एहसास  दिलाना ,
और  बनना ,  बुरा ,  दुनियाँ  की  आँखों  में  , सदा  के  लिए !!

Tuesday, 14 May 2013

जो  भी  गुज़रा ,  वाहियात गुजरा  ,  यार , फिर  भी  देखो  नज़ारा ,
फुर्सत  से  घूमते  हुए  ,  पत्तों  को  झाड़ता  चला  जा  रहा  हूँ  मैं ,
अपनी  गलतियों  के  लिए ,  वक्त  को  लाताड़ता  जा  रहा  हूँ  मैं !!
जिंदगी  को  जाम  समझ  गटका  तो  पाया  ,
कड़वी  तो  है  , हाला , पर  रंगीन  बहुत है !!

तेरी  ज़ुल्फ़  के  घने  साए  से  गुज़रा , तो ,  याद  आया ,
ये  ठंडक  , ये  सुखचैन  कहीं  और  भी  देखा  है  ,
कहीं  और  भी  देखा  है  ,  सहलाता  हुआ   अहसास ,
इक  माँ जाई  बहन  ,  इक  दुलराती  माँ  को , पास से  देखा  है !!

मैं आज  फिर  शाम  , किसी  मंज्ज़र के  नाम  कर  आया ,
झुकी  कमर  , लकुटी टेक  ,  बेआसरा  माँ  को  ,  माँ कह  आया !!

थक  के  चूर  किसी  राही  को  , दो  पल  की  छाँव  तो  दे ,
ओ  बरगद  से घने  वजूद  , इंसान  होने  की पहचान तो  दे !!
हम  गुम हो  गये  चलते  चलते  ,  अपने  ही  ख्यालों  में ,  कभी ,
कितने  ही  जाने  पहचाने  चेहरे  ,  बन  गये  अजनबी अजनबी !

Sunday, 12 May 2013

जो ,  उजली करे  सब  को  ,  उसे  गंदा  करे  कौन  ?
ओ  गँगा  ,  तेरी  संताने  ,  तुझे  माँ  बोलें ,   पर माने  ?  कौन ?
उससे  पूछो  माँ  , होती  है  क्या  ?
जिसने  देखी , ही  नहीं  ,
या  उससे , जिसको  उसने पाला  पोसा ,
फिर  हट  के  जिसने  देखी  ही  नहीं  !!


हद  से  बाहर  भी  नहीं  और  ,  किसी  हद  में  भी  नहीं ,
मेरा  मौला  ,  मेरी  माँ  ,  मेरी  माँ  , किसी  ज़द  में  नहीं !!
हैराँ  हूँ  कि , माँ  का  का  भी  दिन , हो  गया  तय ,
कहाँ  समझता  था  , ममतामय  है  जगत , मैं जय !
रही  होगी  कोई  मजबूरी  ,  कि  याद  करलें  हम ,
वर्ना  माँ  तो  सब  में  बसी  , जैसे ह्रदय में  लय !!
लाल  सब  माँ  के  ,  और  सब  पे  माँ , निहाल ,
इस  माँ  को  मिले  जग  में  ,  जाने  कैसे  कैसे लाल ,
अपने  अपने  हिस्से  की  कसक  सबको  मिली ,
किसी  ने  बाँट  ली  सबसे  ,  किसी  ने  संजो  ली ,
किसी  का  उपहास  हुआ , किसी ने  दिल जलाया  अपना ,
किसी  ने  मथ के  कसक  को , जग  में  रचाई  रंगोली !!

Saturday, 11 May 2013

यादों  को  आगे  पीछे  कर  भी  दें , तो  क्या  ?
जिंदगी  तो  रहेगी  फिर  भी , सिलसिलेवार  ,
तू  चले  आगे  या  रहूँ  पीछे  मैं ,  हमदम  मेरे ,
हैं  मेरी  जिंदगी  के , हासिल  तुझे , सब  अख्तियार !!

Wednesday, 8 May 2013

इश्क  को  नचाते  रहे जो  सुविधानुसार ,
ऐसे  मजनू  को  ,  लैला  ,.... फटकार  !!

काश  कुछ  चलके  ,
सांस  लिए  हल्के  हल्के ,
छाया  को  पेड़  से  छलके ,
इस  तपती  धूप  से  कह  सकता  ,
क्यों  क्रोध  में  है  री  मतवाली ,
गर्मी  है  ,  मौसम  ये  तेरा  ही  है  री ,
क्या  झुलसा  के  ,
जतलाना ,  जरूरी  है  ?
थके  हारे  बदन  से  राही  के ,
ढेरों  ,
पसीना , बहाना , जरूरी  है  ?
नमन  है  तेरे  ओज  को  री  ,
सूरज  को  क्यों ,
अर्घ्य ,  जरूरी  री  ?
शांत , कुछ  शांत  ,  अब  हो लो  री ,
बादल  को  बूँदें  गिराने  दे  ,
धरती  कुछ  ठंडी  होने  दे  ,
इस  पेट  की  आग  से  जलते  को  ,
कुछ  भूख  का  साधन  करने  दे  ,
उसे  शांत  से  मन  से  चलने  दे !!
  

शमशान  की  मिटटी  से , जो  डरते  है  लोग ,
जाने  कैसे , इस  नश्वर जग  में ,
कुछ , कर  जानें  का  दम , भरते  हैं  लोग !!
हर  क्षण  मिटता  है  , कोई  जीवन  यहाँ ,
फिर  क्यों  ,  घर  में  ,  घट  में ,
धन  ,  पाप  ,  घृणा ,  संजोते  हैं  लोग  !!

Tuesday, 7 May 2013

परिंदे  चले  आये  अचानक  ,  देश  तेरे ,  इक  अनजान ,
छूटन  लागा  , जब  देश  वही  ,  जाने  लगी  तब  जान ,
जाने  लगी  तब  जान  ,  और  मोह  तब  न्यारा  हो  गया ,
जो  लगता  था  विदेश  ,  अब  देश  वही  प्यारा  हो  गया ,
कह  संतन को  ध्याय ,  जय  तो  मूरख  हो  गया  ,
जो  ज्ञानी  था  राम  का  ,  राम  से  सून  हो  गया  !!
चलो , तुम  अचानक  ही  सही  ,  मिल  तो  गये ,
यहाँ  रब  मुझको  बना ,  ग़ुम  हुआ ,  फिर  ,  न  मिला !!
ध्यान  मेरा  कहीं  भी  हो  ,  ध्यान  में  पर , गर  ये  रहे ,
कि  तू  है  मेरे  ध्यान  में ,  तो  ठोकर  का  क्या ?  लगती  रहे !!
जित  जाईये   उत  पूछिए , कौन  के  घर  सुख ? सर्व ,
जिस  मानुष  के  कोई  घर  नहीं , उसका  हर  पल  पर्व !!

Sunday, 28 April 2013

हम  ढूँढते  रहे  ख़ुद  को  ,  ज़माने  की  आँख  में ,
और  मिले  तो  आखिर , यार  की , आँखों  में  चुभे  हुए !
क्या  हुए  जो  हम  ,  यार  की  हिफाज़त  में  रहे तैनात ,
यार  को  समझ  आया ,  हम , किसी  खुराफात , में  लगे  हुए !!
अपनी  तो  उन  आँखों  से ,
बन  आई  है  ,
जिन  में  नित  नई  शरारत ,
और  कोरों  में  कन्हाई  है !!

Saturday, 27 April 2013

तेरी  बेपरवाहियाँ  कब  ज़ुल्म  हो  गयीं ,  न  मालूम ,
ये  तन्हाईयाँ  कब  , दिल , पार  हो  गयीं  , न मालूम ,
ये  शहनाईयां कब , ख़ार  हो  गयीं  , न  मालूम ,
अब  सब्र  से हैं ,  हम  कब्र में  हैं ,   बस है  मालूम !!
 

Friday, 26 April 2013

बींध  रहा  मन  का  मणका ,
और  घूम  रही  विचार  धुरी ,
मनका मणका ,  चीख रहा ,
क्यों घूम  रही , क्यों  घूम रही ,
जल धन  रे  गया ,
जल  यश  रे  गया ,
जल  काम  गया ,
कुछ  बस  न  रहा ,
हाय ! छोड़  मुझे ,
ये  जग  भी  गया ,
मुझे  न  जाना  रे , पास पिया ,
रम  गया मन  , इस  हास पिया ,
सुन  री धुरी  ,  अरे  सुन  री  धुरी ,
किस  धुन में  तू , घूम  रही ?
रे मन  ,  मैं  तो  बस हूँ ,पास  खड़ी ,
जो  घूम  रही , है विवेक  लड़ी ,
संग में  अपने , तुझे घुमा रही ,
तेरे  अंतर को  है , जगा  रही ,
त्याग  रे  मोह  तू , इस  तन  का ,
बिंध  जाने  दे  मन  का   मणका !!




 
पृथक   कर  देखो  कभी  ,
सत्य  को  असत्य  से ,
विष  को  अमृत  से ,
देव  को  राक्षस  से ,
पृथ्वी  को  आकाश  से ,
नर  को  नारी  से ,
जीवन  को  मृत्यु से ,
संभव  को  असम्भव से ,
आवश्यक  को  अनावश्यक  से ,
हाँ  को  नहीं  से ,
और  जोड़ते  जाओ  ,  इस  कड़ी  में ,
जो  भी स्मृति  में  आता  है ,
दिखेगा  , बस  एक  ,
जिसमें  सब  समाता  है ,
और  एक  हम  हैं ,  जिन्हें ,
सब  भिन्न नज़र  आता  है !!
मौन  रहो  कुछ  देर  तलक ,
पवन को  कहने  दे , फ़लक़ ,
बहते  बहते , पेड़ों से ,  खिलवाड़ इसे  तू   करने दे ,
कुछ  पत्ते  गिरते  हैं   मृत से ,तो ,
झरने  दे , तू  गिरने दे ,
ये  साएँ  साएँ ,
पत्ते ये  हिलते , दायें  बाएं ,
शाखा  का  मोह  ये  ताक  रहे ,
जड़  से  सम्बन्ध  ,  ये  माप  रहे ,
भूल  रहे  हैं ,  धूप   में  जलना ,
ठंडी  रातों  में ,  बर्फ  का  सहना  ,
भोजन कितना  ये  पका  गये ,
पानी  कितना  उड़ा  गये ,
अब  तो  बस  ये  खेल  रहे ,
पवन  से  इनको  बतियाने  दे ,
झूम  के  इनको  गाने  दे ,
कुछ  देर  ठहर , मत  जगा  इन्हें ,
सुन्दर सपनों  में ,  जानें  दे ,
मौन  रहो  कुछ  देर  तलक ,
पवन  को  कहने  दे  ,  फ़लक़ !!

सोच  में  डूबे  रहे ,  रेत  पर  लिखते रहे ,
पर  टिके  न , वक्त की  स्याही  के  रंग ,
इस  रेत को  पत्थर  बनाना  ,
स्याही  को  पक्का  बनाना , आसाँ  नहीं  है ,
सदियों  की  मेहनत ,  अच्छी  किस्मत ,
और  मेहरबानी  ख़ुदा की  ,  चाहिए  संग !!
कौन  के  गलबाहें  डालूँ  ?
कौन  के  डालूँ  गल  हार ?
यहाँ  सब  परछाईयाँ  हैं  ,
कोई  के , न ,  बरसे  मल्हार !!
मंज्ज़र  और  भी  थे  ज़मानें  में  ,
पर  तेरे  अश्कों   का  मंज्ज़र ? आह !
मज़ा  कुछ  और , आता  सताने  में ,
पर  तेरे  नज़रों  के  खंज्जर ?  आह !


गिरती  बूँदें  भी  हँसती  हैं ,....
जीवन  नया , हम  देंगीं  कल ,....
गिरना  भी  हमारा  है ,....
ज़माने  भर  का  लहलहाता  पल !.....

Friday, 12 April 2013

हर  वर्ष  उम्र  के  साथ ,  इक  नई  खाल  चढ़ती गयी ,
कोई  इक  एहसास  मरता  गया , सच से  दूरी बढती  गयी ,
जागता  है  कोई  भाव तो  अब  , शक से ' साही '  बन  जाते  हैं ,
अभ्यागत  को  बिना  परीक्षा , घर  से  हम  दौड़ाते  हैं !!
सृजन  हो  रहा , काँधे , विसर्जन  के ,
और  हम  खड़े घूर  रहे  अभ्यागत मौत ,
जीवन  मृत्यु  ,  दोनों   बहनों  को ,
समझ  रहे  ,  इक  दूजे  सम ,  सौत  ,
जान  रहे  फिर  अज्ञानी  , चाह  रहे  , उनका विछोह ,
भोजन  चाहते   मनभावन , पर  चाहते , बिन  शौच ,
दूर  खड़ा  वो  राम  हमारा  ,  देख के  हैरान , ये  सब मोह ,
बिना  विसर्जन ,  बचती  अब  तक , क्या धरा पर  इक भी खोह ?



देख  रहा  उदय  ,  सूर्य   का  दिवस  प्रणय ,
शायद  दोपहरी  तक  न  होंगे  हम  ,
शेष  बच  रहोगे  तुम ,
देखना  ये  सफ़र  जारी  रहे ,
सूर्य  का  दिन  बच  रहे  ,
और  कामयाब  ,  होओगे तुम ,
देख  रहा  उदय  ,  सूर्य  का  दिवस  प्रणय !!
मुस्कुराओ , मेरे  यार  मुस्कुराओ ,
अब  बाद  मौत  के  भी  ,
चांस  , है  तेरे  जी  जाने  का ,
किसी  और  का  भी  दिल  दुखाने  का  ,
अब  जब तक  मैं  ,
पूरण  रूपेण  सड़   नहीं  जाता ,
रिपेयर  कर  दिया  जाता  रहूँगा ,
मेरा  दिमाग  ,  जो  गलता  जाएगा ,
ब्रेन  चिप  से  ,  बदलता  जाएगा ,
मेरा  दिल  , जो  ,  भरा  हुआ  है ,
कभी  तेरे   बदन  में  ,  सच  में  ,  धड़क  जाएगा ,
तुझे  रुलाएगा  ,  मुझे  हंसायेगा ,
गिन  गिन  के , तेरे  सताने  के  ढंग ,
तुझी  पे  आजमाएगा  ,
कोशिश  ये  भी  हो  सकती  है ,
तेरी  मर्ज़ी  के  अंग  तुझे  मिल  जाएँ ,
ऐश्वर्य  की  आँखें ,  सुष्मिता  का  बदन ,
रेखा  की  नाक ,  और  क्या  क्या  न  ,
गिना  दूं  मेरे  यार ,
फिर  ये  प्यार  ,  धरा का  धरा ,  रह  जाएगा ,
तेरी  मर्ज़ी  का  मालिक ,
तुझे  मिल  जाएगा  ,
मन  तो  मैं  अपने  दुश्मन  को  दूंगा ,
और  ऐसे  ऐसे  कारनामें  उससे  करवाऊंगा ,
की तगड़े  तगड़े  पहलवानों  से  पिटवाऊंगा ,
भला  हो  वैज्ञानिकों का  ,
मर  के  भी  मैं  चालीस  का ,
काम  चलाऊंगा ,
कृपया  समय  न  गवाएं ,
आज  ही  मेरे  अंग  बुक  करवाएं ,
जिस  जिस  ने  जो  जो  बदले ,
जिस  जिस  से  लेने  हों ,
उसी  के  हिसाब  से  मेरे  अंग  चुन  लें ,
जो  काम  भगवान्  पर   छोड़ा  था ,  मुझसे लें ,
मुझ  पर  भी  कृपा  होगी ,
आप  पर  भी  कृपा  होगी !!



कल  को  चलेंगे ,  युग  के  रचयिता ,
संग  ये  प्यारी  , होगी  चिरयिया    ,
तेरी  मेरी  भूलों  को  ,  मथती  ,
रंग  में  होगी  , तेरी  सोन चिरयिया !!
बस  मेरी  नज़र  से  देखे  कोई ,
बयाँ  के  काबिल , न  तुम  हो  यार  ,
न  तुमसे  मुझको , चाहत  कोई ,
न  वक्त  वो  पल  दिखाए  यार  !!
तेरी  आँखों  से  झर  रहे  सपने  ,
मेरी  आँखें  सहेज  लें  शायद  ,
मुझे  देखना  है  जिंदगी  में ,
कल ,सांझे  हो  सकें  ये  शायद !!
बैठ  कहीं  झुरमुट  के  नीचे ,
सांस  तू  चैन  के  ले  दो  चार ,
कभी दो  पल , खुद से  भी मिल ,
ख़त्म न  होंगे कभी , ये कारोबार !!

Thursday, 11 April 2013


पहचाने  जायेंगे ,  जब  भी  मिलेंगे ,
जो  भी  गुज़रे  हैं ,  वक्त  के  धारों  से ,
या  तो  उनपे  मोहर होगी ,  या  वक्त  पे होगी ,
पहचाने जायेंगे , इक  दूजे के  निशानों से !!

झूठ  था  सब , बचपना था ,
कोयल  जो  कूकी  थी ,
बौराए  नहीं  थे  आम ,
खेल  था  इक ,
गुड्डा गुड्डी  का  ,
मेल  था  इक ,
घर आये तो  ,
सो  गये ,
राधा  और   श्याम !!

दरवाजे  की  साँकल  अब  बजती  नहीं ,
जो  होता है  कुछ , पिछवाड़े  से  होता  है !
दिल  भी  धड़केगा  कल , छुपके  धड़केगा ,
इशारा भी  होता  है ,  तो मिसकाल से होता  है !!
शॉर्ट  सर्कट  अब  हो  गये  हम ,
ज़मीं  से  आसमाँ  ,  अब  हो  गये  हम ,
बिना  आठवीं  दस  करें  ,
बिना  पढ़े  डिग्री  करें  ,
जेल  (  अपराध  कर के  )  जाकर  नेता  बनें ,
सेवा  की  अब  क्या  कहें  ?
दो  रूपए  की  औषधि  ,
हजार में  मिल  जायेगी  ,
जो  बीमारी  न  भी  हो ,
टेस्टों  में  निकल  जायेगी ,
इंजीनीयर ,  ऐसे  पुल  बनाएं ,
दो  दिन में  जो , ओझल  हो  जाएँ ,
सालों  साल  चलें मुकद्द्में ,
अपराधी ,  दो  दिन  में , घर धाये ,
गुरु  जी  की  क्या कहें बस ?
अखबार रोज़ , कहानी  सुनाये ,
विकास  का  ऐसा  रंग  है  छाया ,
देख  सकते  नहीं ,  स्वयं  की  प्रतिच्छाया ,
ऐसे  अजूबे  हो  गये  हम ,
शॉर्ट  सर्कट ,  अब  हो  गये  हम !!
उजड़े  शहर  में  क्यों  जाएँ ,  अब  बार बार ,
दुखता  है वो  भी , अब  मेरे  आने  से , यार  !
सोया  है  यादों  को  वो , सिरहाने लिए लिए ,
टूटे  अब  नींदें , उसकी  , क्यों , बार  बार  !
याद  सांझी  है ,  युग , कितने ? बिताए  हमनें ,
वो  भी  तरसता  है  , उस  रौनक  को , रे  यार !
दुखता  है ,  वो  भी  , और  मैं  भी , हर  शाम ,
बिछुड़े  हम  दोनों  हैं ,  देश हित  को  मेरे  यार !!

बिलासपुर  ,  हिमाचल प्रदेश ,  भाखड़ा बाँध ,  के  कारण ,
उजड़ा  था  !  आज  भी  विस्थापन  का  दर्द  लिए ,  यहाँ  के ,
विस्थापित  लोग , सन  1 9 5 9 से  अब तक ,  उस  समय से
मिली  समस्याओं से  जूझ  रहे  हैं ! उसी  दर्द  को  इन  पंक्तियों
के  माध्यम से  व्यक्त करने  का  एक  प्रयास !!



झंझट से  कहाँ उबरेंगे , हम लोग दीवाने हैं ,
बिन पेंदे के  लोटे हैं , बिन दीवारों के चौखाने हैं !
समझाए  कोई  कितना भी , भला  क्या ,  बुरा क्या ?
स्वार्थ के  दिखते  ही , हम बनते फिर सयाने हैं !
इतिहास  ने  समझाया ,  हम क्यों हुए थे गुलाम ,
वही कारण ,  दोहराने को , दुनियाँ को बुलाये हैं !
वही भ्रष्टाचार का  व्यापार , वही दुश्मनों को न्योते ,
वही घर के  विभीषण , दुनियाँ भर  में दौड़ाये हैं !
देश  मेरा एक , सोच सबकी नेक , फिर क्यों ,
हर पिछ्वाड़े , देशद्रोही हम छुपाये और पाले हैं !
झंझट से  कहाँ उबरेंगे , हम लोग  दीवानें हैं ,
बिन  पेंदे के लोटे  हैं , बिन  दीवारों के चौखाने  हैं !!
यार , जुल्म की  हुई , फिर  इन्त्तिहा आज ,
याद  आया तेरा प्यार से , ज़ख्मों पे फिरा हाथ !
उस हाथ को  ढूंढो तो , मिलना मुश्किल ,
आज  शामिल कहाँ , यार में , पहले से जज़्बात !

संवाद बदल जाते  तो ,  जुबाँ , दोबारा घुमा देता ,
पता  क्या था , जुबाँ  से निकलते ही  , शब्द , शिला होते  हैं !!

Wednesday, 10 April 2013

ज़मीं पे  चलते  हुए जब  पाँव थकें मेरे ,
रुख मेरा , तेरे घर का  हो , इतनी मेहर करना !!
यहाँ कद के  मुताबिक़ ,
मिलता है  सब कुछ ,
और  ये  कद ,
आसमान से  नहीं ,
पाँव छूने से बढ़ता है  आजकल !
इक  बार  अगर ,
ये  कद बढ़ जाए ,
तो जुबां पे  सरस्वती ,
और इशारे पे लक्ष्मी ,
विराजती है  आजकल !
फिर तुम  भी किसीका ,
कद  बढ़ा सकते  हो ,
मालिश  करवा  सकते  हो ,
पाँव दबवा सकते  हो ,
पूजा करवा सकते  हो  आजकल !
पर  ये कद  बढ़ना ,
है  लगातार कदम ,
अपने से  बड़े कद्दावर का ,
कदम है  कहाँ ,ख्याल रखना ,
ज़माना  खराब  है  आजकल !
कभी अपने से  बड़ा ,
बिदक गया ,
और  तुमसे  छोटा ,
झिझक  गया ,
तो कद  बौना  भी  हो  सकता है आजकल !
इसलिए  संभल ,
कद ऊंचा करने  को ,
घर  से  निकल ,
और  जब तक ताड़  न  बनों ,
आत्म सम्मान को घर भूल जाना ,  आजकल !!

 
बाजू से , सरक जाना  हवा  सा , सीटियाँ बजाते  हुए ,
वो  समझे , हम  समझ जायेंगे , सरगोशियाँ उनकी !!
ज़ेहन  में , हो रही  थी खरीद  , सब्ज़ी की  तरकारी  की ,
मंडी में , कहाँ समझ जाते , हम सरगोशियाँ  उनकी !!
हर  सिम्त  होहल्ला था , शोर था , खरीद ओ फरोख्त का ,
ऐसे  में मोहब्बत , खुदा ? वाह रे , सरगोशियाँ उनकी !!
जैसे वो  अहमक  थे सनम , हम  भी निकले उतने ही क़रीब ,
सर  ऊपर से गुज़र गयीं , ये  सरगोशियाँ  उनकी !!

Tuesday, 9 April 2013

एक ही  गमछा ,  एक  ही  कच्छा ,
चले स्नान को  बच्चम ,  बच्चा ,
हो  हो  करते ,  ही  ही  करते ,
सीटी  बजाते , चिढ़ते  चिढाते ,
मीलों  पैदल , खेत खलिहान ,
जंगल  मैदान , बीहड़  सुनसान ,
नदी नाले  पे , चश्में झरने पे ,
जाने किस की किस्मत  जगेगी ,
बच्चों की नीयत फिसलेगी ,
कूद ,  छलांगें , माँ  खैरत मांगें ,
बच के  आ  जाएँ , ये  बच्चे ,
बच्चे कौन ?
जो  धक्के मारें ,
अन तारू को , ताल धकेलें ,
नंगे मुंगे , तैरें खेलें ,
मिट्टी को साबुन सा मल  लें ,
दौड़ें , भागें , झील को  मथ दें ,
डालें , बदल बदल कर , सब ,
एक ही  कच्छा , नये के  अभाव में ,
एक  ही  गमछा ,  पोंछन सबका ,
न कोई भेद ,  न  जात का  लफड़ा ,
ऐसा स्नान ,  न गंगा में भी ,
न तन मैला , न मन मैला ,
एक  ही  गमछा , एक  ही  कच्छा ,
चले  स्नान को , बच्चम बच्चा !!

रे गृहणी ,
कुच्छ  जला है पात्र  में , जो  चूल्हे  चढ़ा ,
रे,  मूर्ख ,
चेता  रही  हूँ , बचा , जो  , समय चढ़ा ,
बचा ,  गर्भ में  स्त्री भ्रूण ,
बचा गली में , बचपन का  खून ,
बचा कार्यालय का  कार्य , बचा ,
सड़क पर  बिकता ,  गुर्दा  बचा ,
बचा  किसी  की अस्मत बचा ,
बचा  देश  की  किस्मत बचा ,
चूल्हे  चढ़ा , दुबारा फिर  बन  जाएगा ,
समय चढ़ा , युग बीते न  बन  पायेगा !!

कांच  का मन ,
रे ,  बचपन ,
मैं  देखूं , सीधे  पार ,
माँ ,  दिखती  केवल  माँ ,
भाई  बंद , अरे , हाँ ,हाँ  ,हाँ ,
सब  है साफ़ ,
न  धब्बा दाग़ ,
यही तो  है , जिसे रखते  सब ,
सहेज  सहेज ,
जिसकी  विवेचना से ,
अब  है परहेज ,
क्योंकि अब हम बच्चे नहीं ,
इंसान तो  हैं ,  पर  सच्चे नहीं !!

 
जब  पूछा ,
एक  बात पूछूं रे  मन ?
हर  पल तू  बदलता क्यों है ?
मन बोला ,
स्थित  कौन  ?
शरीर  तेरा  ?
धरा ?
सूरज , चन्दा ?
समय  का  फंदा ?
दिशाएँ , पवन , शैल या  सागर ?
राजा ? प्रजा ?
ईश्वर इच्छा ?
फिर मैं ही  न  बदलूँ  क्यों ?
मैं बदलूँ ,  तो  तू  बदले  पहाड़ ,
मिट्टी के  शेर  से निकले  दहाड़ ,
युग बदले जब  मन  बदले राम  का ,
सुबह का  जगा ,  दिवस का  थका ,
इंतज़ार  करे शाम का !!


नदिया  सबके अंतस में ,
सूखी ?  बहती ?  इच्छा  है !
आग  का  सूरज  अंतस में ,
जलता ? जलाता ?  इच्छा  है !
आकाश बसा  है अंतस  में ,
खाली ?  भरा ?  इच्छा  है ?
प्राण बसा है  अंतस में ,
मृत ?  या  जीवित ? इच्छा है !
गंध का साम्राज्य अंतस में ,
सुगंध ? दुर्गन्ध ? इच्छा  है !
इच्छा  है स्वयं की  अलग  अलग ,
मानव  को  करती ,  विलग विलग ,
मैंने  देखा है ,  गरीब  का  उत्थान ,
मैंने  देखा  है ,  अमीर , शमशान ,
निर्बुद्ध  को  देखा बुद्ध  बने ,
बौद्धों को  देखा , निर्बुद्ध बने ,
ये जो ,  मेरी  मूरत है ,
मैं हूँ इसका स्वयं भगवान् ,
फिर भी  अगर , न इच्छावत हो ,
तो  इच्छा  तेरी  मेरे  राम !!

 

Monday, 8 April 2013

हल  न कर  सका हल कोई ,
समस्या किसान की ,
जोतते जोतते , पीढ़ियाँ निकली ,
उम्मीद नहीं  समाधान  की !
पढ़  भी लिया ,  गुण  भी  लिया ,
सबक लिया  इतिहास से ,
बीज  लिया  उन्नत  उन्नत ,
क़र्ज़ लिया  सरकार  से !
पर  आज  भी सर  पर भगवान् खड़ा ,
बारिश  मर्ज़ी से  देत बड़ा ,
खेतों में पशु  आवारा बड़े ,
आज  भी  सर  पर सूखा  घड़ा !
बची  हालात से  जो कच्ची फसल ,
बनियाँ ,  दलाल मुंह  बाए  खड़ा ,
हिम्मत  टूटी  बीच  बाज़ार ,
बैंक  ब्याज को  लेने  अड़ा !
कोई  हल किसान को दिखा  न  जब ,
फंदा  गले  में  डाला  तब ,
अब  सब  शांत , न  समस्या , न कोई  हल ,
न  शून्य  काल  में  कोई  हलचल !
हाँ  ,  कभी  कभार ,  किसी  अखबार ,
छप  जाता  है कोई  समाचार ,
और मैं  भी  संतुष्ट  हो  जाता  हूँ ,
चलो  श्राद्ध ही  हो  जाता  है  कभी  कभार !!




  
जीवन  पथिक चल आगे ,
ठोकर  लगे  कोई  बात  नहीं ,
गिरे पड़े ,  कोई  बात नहीं ,
मन  ठेस लगे  कोई बात  नहीं ,
तेरे अंतर  में ,  है  बैठा वो ही ,
जिसके  हाथों में दुआ, दवा ,
जिसके  कहने  से  बहे हवा ,
प्राण ,  अपान जिसके  कहने  में ,
जिसकी  करवट है , आब ओ हवा ,
तड़ित वही , वही बादल ,  चाँद ,
वहीँ से  निकली , सुबह  और सांझ ,
कुछ तो  रख विश्वास  अरे ,
अपनी  आशा पे   उतर खरे ,
ये  जीवन  बाधा ,   तेरी  परीक्षा ,
हर  पग उत्तीरण तू  होगा अरे ,
जीवन पथिक ,  चल  आगे ,
तेरे निशानों पर   चलने को ,
कितने तेरे  पीछे खड़े !!



कितने  ही  उपद्रव  हुए हैं  धरा पर ,
पर  क्षमा किये  जाती  तू  माँ अभी ,
और  हम  हैं  कि , परीक्षा लिए  जा  रहे ,
सहेगी तू  कब  तक , पीड़ा , दिए  जा  रहे ,
मालूम है ,  है  दूजी , कोई ,  माँ न अभी  !!

जीवन स्पंदन ,
हुआ , कांख  में ,
जैसे  कण कोई ,
गिरा आँख में ,
अनजाने में ,
छुआ हाथ नें ,
महसूस हुआ ,
कुछ  प्राण है उसमें ,
न देखा ,
न , भाला उसको ,
पल  में डर से ,
मसल  दिया ,
क्षण में जीवन ,
रीत गया , पल  बीत गया !
यही  भाव  है  ,
बुद्धि विनाशक ,
ग्रस्त  सभी ,
इससे जीवित जन ,
पशु , शावक ,
हिंसा का  यही ,
कारण एक ,
जीत  न  ले कोई ,
डर  यही एक ,
नष्ट करे यह ,
बुद्धि  विवेक !!




मेरा मिजाज़ मैं नहीं  जानता ,  तुम  क्या जानोगे ?
बीता  इतिहास ,आधा  सच आधा झूठ ,
आज का  पल बीत  रहा , आधा व्यक्त  ,  आधा मौन ,
गर्भ में क्या ,  भविष्य के  है , क्या जानू  मैं ?
खुदा  नहीं  जानता , स्वभाव है  जिसका , तुम क्या  जानोगे ?

Saturday, 6 April 2013

यार तू मुझे  अच्छी सी किस्मत देदे पहले ,
समझ  लूँगा फिर ,  खुदा क्या  है ,
मेरा  जीवन  निकल  अच्छे   से  जाए ,
कौन  मेरा  है  खुदा , मुद्दा  क्या है ?
मैं  जानता  नहीं था दम घुटना है  क्या ,
पकड़ा यार ने  गला ,
प्यार अनजान रास्ते  चला ,
ऑफिसर की बेमतलब  झाड़ ,
नेता  की  , अनुचित लताड़ ,
मातहत का  रौभ ,
अर्धांग का क्रोध ,
बच्चों  के  आगे ,  विवशता ,
बच्चों के  कारण विवशता ,
स्वयं के  आगे विवशता ,
स्वयं के  कारण विवशता ,
असूलों से  टकराव ,
असूलों के कारण बिखराओ ,
सब  समझ आ  गया ,  ये जीवन है  क्या ,
मैं जानता हूँ  अब , दम  घुटना है  क्या ?


तू सुने तो आवाज़  लगाऊं मैं ,
तू  रुके तो घर आऊँ मैं ,
विवेक हूँ तेरा , खड़ा द्वार तेरे ,
चाहे जगना ?  जगाऊं मैं ?
ये प्रश्न ज़रूरी  है ,
मेरी मजबूरी  है ,
मैं कलयुग का  हूँ  भिखारी ,
लोग मेरी सूरत देखते ही ,
द्वार बंद कर लेते हैं ,
मुख दूसरी ओर कर  लेते हैं ,
लक्ष्मी भी मुझे छोड़ ,
मेरे हन्ता संग खड़ी है ,
कभी लगता  है ,
वह विष्णु से बड़ी है ,
पर भिक्षु का कर्म है ,
हांक लगाना , अलख जगाना ,
चाहे  जगना ? जगाऊं मैं ?
तू सुने तो आवाज़ लगाऊं मैं ?
न जानता  रोमियो जूलियट , न  जानता हीर  और रांझा ,
पर  जानता  हूँ प्यार का बंधन , जिसने जगत  को बाँधा !!
जानता  तुम  हो  समंदर , तो  खोलता  न कश्तियाँ ज़ुबां की ,
यूँ  ही डूब जाता  मैं , मौन , मौन , मौन !!

Thursday, 4 April 2013

कौन  जाने  तुम  फिर  परिचित  निकलो ,
कौन  जाने  तुम  फिर  गुम   हो  जाओ ,
कौन  जाने  तुम संग  चलोगे ,
कौन  जाने तुम बदला  लोगे ,
कौन जाने ये  सब नाटक  हो ,
कौन  जाने  बंद सब  फाटक हों ,
अब  इस  कौन से  बाहर निकलो ,
स्वछन्द बिताओ ,  जीवन निकलो ,
प्रश्नों  में  मत  घेरो  जीवन ,
उत्तर ,  सबके ,  मिलेंगे निकलो ,
ये  जो अनिश्चितता है पग  पग ,
यही तो जीवन आनंद  है निकलो ,
अंधियारे  उजियारों  में बदलेंगे ,
तुम इक पग , घर  से  बाहर  निकलो !!
मेरा कुछ  था  ही  नहीं  , तो कुछ  खोया कैसा ?
कुछ  पास  होगा  नहीं  , तो  फिर पाया  कैसा  ?
पर  ज़िंदा  हूँ  जब  तक , एहसास  है  मुझ में ,
तो  जो  सांझा है  सबका ,  कुछ  कर  जाएँ  ऐसा  ?


राम  ही  जाने क्यों आता खुदा  याद ,  जब बरबादियाँ  मुंह चिढ़ाती  हैं ?
सब  भेद  मिट  जाते  हैं , जब माथे  पर लिखी  किस्मत  , गर्दन  पे  आती  हैं  !!
 
बिकता है आजकल सब  द्विअर्थी ,
तो   क्यों न  हो  जाएँ  हम  भी ,
बाहर  निस्स्वार्थी ,  अन्दर  स्वार्थी ?
अब  ख़बरों में  वो  आता  है ,  जुल्म  जो  कर  जाता  है ,
कुछ  क़त्ल  कुछ  रेप , कुछ  मामलात  रैड टेप ,
कुछ भीगते  हुए  बारिश में , कुछ हालाते  खारिश  में ,
कुछ  सेंकते  धूप ,  कुछ  गिरते  हैं  जो  अंध कूप ,
कुछ प्रचार  किसी  का , कुछ व्यापार  किसी  का ,
खेल  खबरें भी  वही , जो  बिक जाती  हैं ,
नाज़  नखरे  भी  वही  , आँखें  जिनसे सिंक  जाती  हैं ,
कुछ  तो  बदलो  मेरे  यार ,
भार  तुम  भी  उठाओ यार ,
उनको  भी  दो  कुछ जगह उधार,
लिखो उनपर  भी कुछ , जो  बेड़ा लगाएं  पार !!

Wednesday, 3 April 2013

रंग   महल अब   भी  हैं , अब  भी  हैं  ख़ास  ओ आम ,
कौन  कहता  है  बीता  ज़माना अभी , अब  भी खनकते  जाम ,
सूरतें  तब  भी  बदलती  थीं , सूरतें  अब  भी  बदलती  हैं ,
हर सदी  में ,  बना  लेते  हैं ,  चापलूस  अपना  काम !
अब  भी खाता  है दिमाग  की  कमाई  कोई ,
कोई  लाठी  पिस्तौल  की  धमक  खाता  है ,
कोई खाता  है व्यवहार ,  व्यापार  से , और जी  हजूरी  से  कोई ,
जाति   कहाँ  बदली ? बदले  बस  नाम !!
हल्की सी  हवा  आने  दो ,
घुटन  है  बहुत ,
साँस की  लय , संभल जाने  दो ,
मैं  भी  पी  लूं  कुछ कड़वी  दवा  ,
ऊपर की  कमाई के  गुर , लेने  दो ,
अब न  चलन है ,  सज़ा  का  कुछ भी ,
दो चार गुनाह कर  लेने  दो !
मेरे  बच्चों को  भी देनी है डोनेशन ,
चुनना  है अच्छा  सा  प्रोफेशन ,
मेरी सामर्थ्य  को  भी कुछ पलने  दो ,
कुछ आगे  बढ़ने दो !
डॉक्टर भी कुछ  हैं  परेशान ,
मेरे  खून में  कुछ है  कमियाँ ,
इन विकास की  विधियों से मुझको ,
रिएक्शन होता  है , मेहरबान ,
इसलिए ,
हलकी  सी  हवा  आने  दो ,
भ्रष्ट  देश  का  भ्रष्ट नागरिक ,
मुझको  भी  बन  जाने  दो ,
सांस ज़रा संभल जाने  दो !!


मासूम सी  हरकत  मेरी , और  छेड़  कर वो गये ,
लगता  है उनको बार बार , किसीका तड़पना खुशगवार !!
आ चलें ,
कुछ कदम ,
कुछ भला ,  कर जाएँ हम ,
पहचानें कोई ,  न इसलिए ,
पर है ये धर्म इसलिए !
ये जिंदगी जो चल रही ,
है निरंतर धार ये ,
पर केवल तब तलक ,
जब है न बस ,  निस्सार ये !!
अजनबी थे तब तक , मिले थे न राहों में ,
अब राह चलते मौन ? जुल्म नहीं तो क्या ?

गुज़रे  कोई  गली  से , मंज़ूर  है  नहीं ,
मेरा रहना उस  जगह , जहां मैं भी मैं  नहीं !!


मुद्दा नहीं है  कोई ,  दोस्त बना  नहीं ,
दुश्मन बना  वो  कैसे , परेशानी है  बस  यही !!
बहुत  रंग  देख  लिए तेरे इस  जहां में ,
राम रंग  देखें अब , समय आ  गया है ,
बेरंग रंग हो  गये , दुनियाँ के मेरे  सामने ,
डूबें तेरे रंग  में , अब  समय आ गया है !!

Friday, 29 March 2013

भूल  गये  क्यों साथ  तुम्हारे ,  चलता  इक  साया है ,
तुम बचते  फिरते  काँटों  से ,  साए  को  क्यों  उलझाया  है ?
साए  की  किस्मत बंधा  है  तुमसे , है  कैसी यह माया है ,
तुम  स्वतंत्र ,  छाया  परतंत्र ,  अंधियारा क्यों  ये  छाया  है ,
तुम  परमात्म , मेरी आत्म को  क्यों  बख्शी  ये  काया है ,
या  चारों  तरफ प्रकाश  हो ,  या  चारों  तरफ  अँधेरा ,
तब  मैं तुमसे  एक  बनूँगा ,  कैसी  ये  सब  माया  है ??
हाथों  को  ज़मानें भर  का  हुनर  बख्शा ,  पर  इतना  तो  किया  होता ,
उठते  हाथ  दुआ में  खुद से  , कोशिश  करनी  न  पड़ती आफत आई  में !!
जुल्म  इतना  भी  नहीं  अच्छा ,  कि  कोई  निगाह  आये  ही  नहीं ?
कहाँ  हम शैतान  हैं जमाने  के , कि सीधे , दिल  में उतर  जायेंगे !!
कारीगरी  तो  देखिये  खुदा ने  हमसे  क्या  किया ,
तन  बदन अलग  दिया ,  दर्द ओ गम अलग  दिया !!

Tuesday, 26 March 2013

देवर के  हिस्से  में  कुछ  घेवर  आयें ,
अर्धांग्नी  को  कुछ   जेवर आयें ,
भाभी  को  दंडवत  तब  बड़े   प्रेम से ,
भाई  सहित  मेरे  घर  आयें !!
बुरा  न  मानों  होली  है ,
हम  सब की ये  ,  बड़ बोली  है !!
होलियाँ कब  न  हुयी होलियाँ तेरी ?
वही रंग ,  वही भंग , वही बोलियाँ  ,
ढोल वही , थाप  वही ,
वही बैर भुला , फिर  से , दोस्त  बनना  मेरा ,
जारी  है ,  बरसों  बरस ,
और तू फिर से  गले  मिल  बोल  रहा ,
होली  मुबारक ,  होली  मुबारक ,
होलियाँ कब  न  हुयी होलियाँ  तेरी ?
फिर  भी  इक  रंज  है होली  से ,
तेरे  रंगों  ही  में मैं  क्यों  भूल  गया  ?
मैंने  खोया  है बहुत  कुछ  पीछे ,
कुछ , भगत  ,  सुखदेव ,  राजगुरु  जैसे ,
गांधी  ,  सुभाष  ,  तिलक , आजाद  सरीखे ,
जिनकी  कुर्बानी  से  रंग ,  खिल  रहे  माथे  पे  मेरे ,
रंग  कुछ  ,  नाम  इनके  भी  हो  गये  होते ,
कुछ  भ्रष्ट  कम ,  हम  हो  गये  होते  ,
खिलती  ये  होलियाँ और  भी कुछ हम  पर ,
लगता  हम  भी , कुछ अपने  हिस्से  का  रंग ,
अपनी  कुर्बानी  के नाम , देश को  दे  गये होते ,
होलियाँ कब  न  हुयी  होलियाँ तेरी ?
तू  मनाये  कभी ,  तेरी  आदत  में  शुमार  कहाँ  ?
रूठ  जाना  मेरा ,  तुझसे  मिलने  के  बाद , शुगल  है , रूठ  जाना  कहाँ ?
 
मेरी जिंदगी के  वरक मुझसे  नहीं  लिखे  जाते ,
मगर  बचते  भी  नहीं  खाली ,
मुश्किल  है जिंदगी  की  किताब , फुर्सत से  लिख  पाना !!
 

मेरी  होलिका  ,  मुझे  जलाने  दे ,  मेरी  आग  से ,  मुझे  पहले ,
रंग  होली  के  लगा  देना  तुम  ,  मेरे  बचने  के  बाद !!

Saturday, 23 March 2013

ऐसे  ही  नहीं ये  रंग  रंगीन ,
ये  मूंछो  के  नीचे से  बजती ,
यूँ  ही नहीं  बीन ,
यूँ ही  नहीं  ये  आँखें ,  अखियाँ मारे ,
गुजरा  तो  होगा गलियों से  ,
कोई  बांका ,  कोई  हसीन ,
यूँ ही दिल  , कोई  पागल नहीं  उछलने के  लिए ,
किसी से  वादे तो  हुए   होंगे संगीन ,
क्यों  भाई  प्रवीण ?

युद्ध से  भागते   हो क्यों?
प्रश्न ये  पूछता है ,
असमर्थ अपने  आप  से , बार  बार ,
बन  अर्जुन गिड़गिड़ाता है ,
भाग  जाना  चाहता  है ,
नए  नए  बहाने गढ़ता  है ,  पलायन के ,
और  हर  बार  आत्म कृष्ण बन ,
उसे  धरती  से  उठाता  है ,
स्थिति  से  उबरने  के  लिए ,
उसे समस्त  शक्ति बटोरने के  लिए ,
समझाता है , गीता  रचता  है ,
युद्ध  को  प्रेरित  करता  है ,
महाभारत  करवाता  है ,
उस  कमजोर क्षण  के  निकलते  ही  ,
हम फिर  गीतोपदेश भूल जाते  है ,
स्वयं  को  विजेता  महसूस  करते  हैं ,
फिर एक  बार कमजोर  महसूस करने  के  लिए ,
बार  बार   महाभारत में उतरने  के  लिए ,
सृष्टि  के  अंत  तक !!

Wednesday, 20 March 2013


अजब सी  फुर्सत है  आजकल , चाहते हुए भी कहीं ,  आना जाना नहीं होता , 
न किसी  का  आना  होता  है , न किसी  का  जाना होता  है ,
गलती  से कहीं  पहुंचें ,  किसी  की  मिजाज़ पुरसी  में ,  तो  होता है  ये  हाल ,
क्यों  डाला खलल इसनें ?  इस सोच  में , हैरत  से , उनका मुंह खुला  होता है !!

गुलामी इक  नाम नहीं  , भोगी  है सदियों तक ,
औलाद मेरी  अब  क्या  जानें , आज़ादी लुटाती  है , गलियों में ,
मेरा  नाम   भी अब  अपना  नहीं , इंडिया इंडिया  गाते  हैं ,
बिन  मेहनत जो मिल  जाए ,  उस  से  परिवार  चलाते  हैं !!
इतना  भी आसान  नहीं  दुनिया  का  खुदा होना  ,
मुझे  तो  हासिल  नहीं  ,  खुद  का भी  खुदा होना !!

Monday, 18 March 2013

बीनते  जाते  रास्ते  में जो  कंक्कर ,  वो  फक्कड़ कहाँ  मिलते  अब  यहाँ ,
अब  तो  साधू  के  वेश , ठगते मेरा  देश , कांटे  ही  कांटे  बिछाते यहाँ ,
पूजे  जाते  स्वयंभू  ,  शंभू की  जगह ,  नेता ही  नेता अब  दिखे  सब  यहाँ ,
फटे  कपड़ों  में  जो  रहे उम्र सारी ,  उनकी  मूरत को  मिलते  स्वर्ण  सिंहासन यहाँ !!
झुर्रियों  की  आड़  से  झांकती ,  जिंदगी ,
मुझको दिख गयी हांफती  जिंदगी ,
हर  झुर्री  के  पीछे  का  अनुभव  दिखा ,
हर सीढ़ी पे  चढ़ता  कदम   इक दिखा ,
सफलता  असफलता के रंग  में  मढ़ा ,
कुछ  फूलों  सा  कोमल , पसीना खड़ा ,
कहीं  पत्थर  के  कण , राहों के  रोड़े से ,
कहीं  भावों  की  नदिया , सब्र  के  घोड़े पे ,
कहीं ख़्वाबों  की  नाव , नाची हिंडोले से ,
पर  डिगी न  कोई लट ,  असूलों के माथे  से ,
ऐसी  जिंदगी सोहे तेरे  नाम  पे ,  और  मेरे  नाम  पे  ,
तो भली जिंदगी ,  भले , हांफती  जिंदगी ,
झुर्रियों की  आड़ से  झांकती ,  जिंदगी !!
धुंध  से निकल  आगे  ,  निकल  जाओगे  तुम ,
बस  कुछ  कदम  और ,  चलो  सूरज  की  ओर ,
है  हर  कदम  पीड़ा ,  कुछ डगर  नहीं  आसान ,
पर  धरो  कुछ  धीर ,  बढ़ो  सूरज  की  ओर ,
हवा  बहुत  बार  बदले ,  कभी  दे  साथ , रस्ता कभी  रोके ,
तुम  खोलो  पाल , बनों  खुद  की  ढाल , देखो  सूरज की  ओर ,
असफलता  डसेगी ,  दुनियां  फब्ती कसेगी ,
कसम तुमको  मेरी , न रुकना जरा भी , जाना सूरज की ओर !!

Thursday, 14 March 2013

कौन देगा  शाबाशियाँ  अब उन अइयारों को  अये खुदा ,
तेरा घर  बसाने को  जिन्होंने  अपने घर जला  दिए !
दिए  उठाये   सर पे  घूमे , अंधविश्वासों के  डेरों में ,
शफा , दवा  , ले  बस्तियों में , सेहत लौटा गये , मरीजों में ,
दुश्मनों को  हद पे रोका ,  जिन अनाम शहीदों ने ,
खो  गये सब , जिनके  काम अबके चापलूसी  के  दौर  में ,
कौन  देगा  शाबाशियाँ  अब उन अयियारों को अये खुदा ,
तेरा  घर बसाने को  जिन्होंनें  अपने  घर  जला  दिए !!

क्यों  न  सजें  मेरे  शाम ओ  सहर  ,  महफ़िलों  के  अंदाज़  में ,
अय खुदा ,  मुझको  बता ,  मेरी  इन  दुआओं  का  क्या  हुआ ?
कोई न  रहे  अरे तंगहाल , किसी दिल  में न  हो कोई  मलाल ,
कोई  बतायेगा  मुझको  क्या ? मेरी  इन  दुआओं  का  क्या  हुआ ?
कोई  गुनाह  न  दुनियां में हो ,  कोई सज़ा का  न  सवाल  हो ,
कोई  सुनाएगा  मेहरबान ?  मेरी  इन  दुआओं का  क्या  हुआ ?
हर  शै  दुनिया  में हो  खुशनसीब ,  खुद  को  न  माने  कोई  बदनसीब  ,
मेरे  खुदा  मुझे  सच बता  ,  मेरी  इन दुआओं में  क्या असर न  था ?
अय मेरे खुदा ,  मेरी  अब  भी  दुआ  ,  यही  रहेगी  बारबार  ,
कोई  गुनाह  अगर  हुआ  कभी ,  उन्हें  भूल  जा ,  हमें  बख्श  दे  ,
क्यों  न  सजें मेरे  शाम  ओ  सहर  , महफ़िलों के  अंदाज़  में ,
अय खुदा ,  जय को  बता  ,  मेरी  इन  दुआओं  का  क्या  हुआ ?




Monday, 11 March 2013

हर  ईंट  से पूछा  बुनियादी  सवाल , इमारत बनने में  किसका  कमाल ?
पैसा मालिक का  या  इमारती सामान ? या  इंसानी  हाथों का है ये  जमाल ?
या  सोच है  आर्किटेक्ट की , या इंजीनियरिंग का करिश्मा है , बेमिसाल ?
ईंट  ये  बोली ,  हासिल  सब   कुदरत से , और  कुदरत भी  मालिक  की ,
जरूरत न  होती , कुछ महसूस न  होता , धन  तेरा मालिक ,  कमी रक्खी फिलहाल !!

Thursday, 7 March 2013

धुंधलके  गहराने   लगे  आँखों में  मेरी , और  मैं  समझा  उम्र ढलने  लगी ,
मौत  के  साये मुझे  दिखने  लगे , मालूम न  था  कारण  हैं और  भी  कई  !!
लोभ  क्रोध  घर  कर  गये जिस्म  में मेरे , मैं समझा  दोस्त मेरे हैं अब  बड़े  बड़े ,
जिह्वा स्वादु हो  रही ,  चख के  नये  स्वाद , मैं  समझा  स्वर्ग पहुंचा ,  मैं  खड़े  खड़े !!
जिस्म जान भर  गयी मेरी शराब  में , मज़ा आने  लगा  शवाब  कबाब में ,
भीड़  जुट  गयी  यार ,  दुनिया  जहां की , मैं  समझा बन  गया  अब  नवाब  मैं !!
छटने  लगे  पर  झट  ही  बादल ,  मौसम  ने  जब  बदले  मिज़ाज ,
यार  कार  गुम हो  गये , दिखने लगे , खाली बटुवे खाली  गिलास !!






महके  हुए से  अंदाज़  हैं  बहार के  ,  खिजाँ  विदा  हो  गयी अब पार साल  को ,
मुट्ठियों में भर  लिए  हैं रंग  सब नये ,  भिगो  देंगे तुमको यार पूरे  साल को !!

Wednesday, 6 March 2013

अपराध करना था  तो  यूँ  ही कर  लिया  होता ,
 पी कर शराब  , मुझको , बदनाम कर  दिया तूने !!
कोई  तो  वजह होगी  , सब  हो  गये बेपीर ,
तड़पता  नहीं  कोई , जब सड़कों पे लुटे  हीर !!
फिर  से  दिल  के  तार  हिला  गया  कोई ,  जो  मर  गये  थे  भाव ,  जगा  गया कोई ,
फिर  से  लगने  लगा जीवन  सब को है  प्रिय , दीन  हीन  जीव  में ,  राम दिखा  गया  कोई !!
सामान मेरा  है ,  और  मैं ही  परेशां , इस  खोटी कमाई  को ले  जाऊं कहाँ ?
ये  बोझा नहीं आम , जो उतरेगा सिर से , आत्म से  चिपकी है , छिपाऊँ  कहाँ ?
दूर  तक  जाती  है  आवाज मेरी , पर सोया है बिस्तर पर मेरा  पड़ोसी ,
ऐसे  में  इशारा  ही करदूं तो काफी  है , कहीं बीमारी से  बेहाल न हो ,मेरा  पडोसी !!
जमेंगे दो चार दिन हम भी होली पे ,
भांग गटकेंगे मटके से होली पे ,
रंगों को  थोड़ा बचाके  तुम रखना ,
हम  भी लगा  देंगे थोड़े से होली पे !!

Tuesday, 5 March 2013

अर्धांग्नी को कहाँ फुर्सत , मुड़ के देखे , कहाँ शेष उसका, क्या  वेश उसका  ,
हो हो के  आगे मूरत दिखाए , अब कहाँ पसंद आये बुढऊ  फेस उसका !!

जिंदगी में सब ही अच्छा हो कहीं होता है ?
बुरा ही हो उम्र भर  सारी कहीं  होता है ?
ये  तोहमतें खुदा  करे , खुदा पे न हों तारी  ,
इन्सां हो  ज़मीं पे , खुदा आसमान , कहीं होता है ?
मैं  अपनी मिटटी , लिए  घूमता हूँ ,
ज़मीं पे दफन की , जगह ढूंढता हूँ ,
जो  जिसका  लिया  है ,लौटा ही  दूंगा ,
महज अपने होने की , वजह ढूंढता  हूँ !!

तुम परमाणू  बनो , धरो कुछ  आग अंतर में ,
निरंतर बहने  दो  उर्जा ,  हृदय में , मन  आत्म में ,
पर बाहर न आने  दो , लहर  भी इक  आन्दोलन  की ,
ब्रह्मास्त्र सा धरो  धीर , रहो , पर चलो न कभी जन में !!

Monday, 4 March 2013

मैं  लौटा  के  लाया  सागरों से , ग़र्क  बस्तियां ,
सब  कहने  लगे ,  ये  कौन  मौत ,फिर से  उठा  लाया !!
बह गया यूँ  भी कोई , क्या  मेरे मेहरबान ?
सब  कहते  हैं बहक  गया , वो  मेरे  साथ साथ !!
मैं तेरा  रब न  सही  कम  भी  नहीं  हूँ ,
जितना  था  अख्तियार में मेरे ,जा  दिया  मैंने सब  तुझे !!
समझते  ही  नहीं  मौला  मेरे  , कुछ होते  हैं दीवाने भी ,
लाख  निकालो  घर   से  उनको , हटते ही  नहीं दर  से वो !!
नकारो  मत  मुझे  मेरे  मेहरबानों , आने  दो  जरा , थोड़ा  धूप  थोड़ा  पानी ,
लहराऊंगा  इक  दिन ,  आने  दो  थोड़ी  हवा , अंकुरित  होने  दो  जरा , मेहरबानी !!

सोना  बटोरने  चला ,  बटोर लाया थोड़ी  धूल ,
जैसे  ही  डाली  लोभ  पे , सर्वत्र सोना हो  गया !!
कनखियों से  देखता  है , यार , बार  बार  क्यों  ?
जाना  जब  जूतियाँ  ,  दिखीं  अलग  ही  रंग  में !!
पेड़  हूँ  बंधा  हुवा , जड़ से  अपनी शर्म की ,
वर्ना  भ्रष्ट आंधी  ने  पाँव थे  हिला दिए  !
अच्छा हुआ  न पैदा  हुआ , मानव बन धरा पे  आज ,
वर्ना होता  मैं भी  यार , शर्म से  गड़ा  हुवा !!
झलकता  है  प्यार  हर  फूल हर  कली  पे तेरा ,
पर ऐ  ख़ुदा , ये  दिल   कहे  और ,  और , और ,और !!

Sunday, 3 March 2013

उसका  पता  तुम  मुझको  दो  , ईमान  का  है  जो पैरोकार ,
पूछूंगा  उससे  खुल के  बता , सस्ता  क्यों  है ईमान  आज ?
मैं  क्यों तेरी  ख़ुदाई   में  कुच्छ  अख्तियार चाहता हूँ ?
काफी  नहीं  क्या  मेरे  लिए  , सरपरस्ती तेरी  खुदा ?
मेहरबां  कुच्छ  तो  होगा  खुदा ,  तुझे पैदा  किया  इंसान ,
और  परेशां  तुम  हो के  , हासिल  तुम्हें कुच्छ है कुच्छ है  भी  नहीं  !

Saturday, 2 March 2013

चलो  भुला  चलें रंजिशें  सारी , फिर  से स्वस्थ  मन  हो जाएँ ,
क्यों ढोते चलें बरसों  बरस  लावे , कभी बर्फानी हिमाला हो  जाएँ !!

Sunday, 17 February 2013

हे  री मन कब था मेरा ,जो, अब होगा  ,
घूमता  घर  बाहर चहुँ ओर , बन  चोर ,
अभी  चाँद  पर अब ,  सागर  में ,
अब बन हवा , बादल ओढ़े घनघोर ,
गिरा  बिजलियाँ छू मंतर  बन ,
पल में भागे , सजनी  आगे  , बन  मोर ,
हे री मन कब  था मेरा , जो अब होगा ,
घूमता घर बाहर चहूँ ओर , बन चोर  !!

Saturday, 16 February 2013

दो  कदम  चल , पूछता  राही  नया , है  कोई  मुझसा ? पहले भी क्या ?
गुनगुना  लेता  अगर दो  चार स्वर , पूछता ,  पहले  भी गाती थी  हवा ?
कूची  भी  थी  पहले  क्या  किसी  हाथ  में ? बहार भी  थी  इतनी क्या रंगज़दा ?
छुआ मुझसे  पहले ख्वाब ? क्या  किसी  रात ने , भीगी थी  पहले भी बरसात क्या ?
समेटा  शबनम को  था क्या ,  पहले भी क्या फूल ने ? पहले  भी  सूरज गर्म था क्या ?
अरे  मैं  ही  हूँ , मैं  ही  हूँ  पहला  कदम , मुझसे  पहले  रास्ता , इतना कम  था क्या ?

Friday, 15 February 2013

बिकती  हैं  बातें  ,  बिकते  हैं  सपने , बिकता  ज़मीर  और  बिकता शरीर ,
पिसता पसीना  ,  रिसता लहू , हुनर  बन गया अब  चापलूसी  का  गुलाम ,
ये  कैसा  है वक्त  और  कैसा  विकास  , क्या  होगा  भविष्य , और इतिहास ,
सोचते  हैं  जब  फुर्सत में झंडे  के आगे  , पूछता  है  मन , क्यों  नेता  को  सलाम ?
मेह्नत के  औजार छीने  जो तुमने  , दी भूख  , चोरी , डकैती , हमें ,
ये गति विकास की कैसी रे मन , इन  विकसित मशीनों  से पूछे कोई !!
बिखर गयी हाला , सिन्दूरी सिन्दूरी  , छलक गये समंदर भर जाम ,
पगलाई सी धरती ने , पर्वत और  घाटी में औटाये , फूलों के  रंग तमाम !!
महफ़िलें सजा  लेना  तू , मुझे वीराने  में  गुनगुनाने  दे ,
सहेज लेना तू सब चाँदी सोना , मुझे मिट्टी के रंग हो जाने दे !!
गर्दन  झुकी झुकी , गति  मंथर  मंथर , सोच  में डूबा लगता है ,
ये  देश  मेरा , अनजान मोड़  पर , अपनों से  सताया लगता  है !!
चौराहों पे खड़े दुविधा  में  , ऐसे भी हैं कुछ दीवाने ,
रस्ते चुने जो मजबूरी  में , अपनी  पसंद के अभाव में !
राम  ही की सेना  में ,  जब भरने  लगें राक्षस अविराम ,
हर  चेहरा  लगे जब रावण सा , क्या कर लेगा जग में इक राम!!

जो  बोलें  नयन  तेरे , अर्थ सभी  छुपा  लेना ,
पगला जाएगा मतवाला , पढ़ने जो चला  दीवाना !!