Friday, 26 April 2013

पृथक   कर  देखो  कभी  ,
सत्य  को  असत्य  से ,
विष  को  अमृत  से ,
देव  को  राक्षस  से ,
पृथ्वी  को  आकाश  से ,
नर  को  नारी  से ,
जीवन  को  मृत्यु से ,
संभव  को  असम्भव से ,
आवश्यक  को  अनावश्यक  से ,
हाँ  को  नहीं  से ,
और  जोड़ते  जाओ  ,  इस  कड़ी  में ,
जो  भी स्मृति  में  आता  है ,
दिखेगा  , बस  एक  ,
जिसमें  सब  समाता  है ,
और  एक  हम  हैं ,  जिन्हें ,
सब  भिन्न नज़र  आता  है !!

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