पृथक कर देखो कभी ,
सत्य को असत्य से ,
विष को अमृत से ,
देव को राक्षस से ,
पृथ्वी को आकाश से ,
नर को नारी से ,
जीवन को मृत्यु से ,
संभव को असम्भव से ,
आवश्यक को अनावश्यक से ,
हाँ को नहीं से ,
और जोड़ते जाओ , इस कड़ी में ,
जो भी स्मृति में आता है ,
दिखेगा , बस एक ,
जिसमें सब समाता है ,
और एक हम हैं , जिन्हें ,
सब भिन्न नज़र आता है !!
सत्य को असत्य से ,
विष को अमृत से ,
देव को राक्षस से ,
पृथ्वी को आकाश से ,
नर को नारी से ,
जीवन को मृत्यु से ,
संभव को असम्भव से ,
आवश्यक को अनावश्यक से ,
हाँ को नहीं से ,
और जोड़ते जाओ , इस कड़ी में ,
जो भी स्मृति में आता है ,
दिखेगा , बस एक ,
जिसमें सब समाता है ,
और एक हम हैं , जिन्हें ,
सब भिन्न नज़र आता है !!
No comments:
Post a Comment