Monday, 8 April 2013

हल  न कर  सका हल कोई ,
समस्या किसान की ,
जोतते जोतते , पीढ़ियाँ निकली ,
उम्मीद नहीं  समाधान  की !
पढ़  भी लिया ,  गुण  भी  लिया ,
सबक लिया  इतिहास से ,
बीज  लिया  उन्नत  उन्नत ,
क़र्ज़ लिया  सरकार  से !
पर  आज  भी सर  पर भगवान् खड़ा ,
बारिश  मर्ज़ी से  देत बड़ा ,
खेतों में पशु  आवारा बड़े ,
आज  भी  सर  पर सूखा  घड़ा !
बची  हालात से  जो कच्ची फसल ,
बनियाँ ,  दलाल मुंह  बाए  खड़ा ,
हिम्मत  टूटी  बीच  बाज़ार ,
बैंक  ब्याज को  लेने  अड़ा !
कोई  हल किसान को दिखा  न  जब ,
फंदा  गले  में  डाला  तब ,
अब  सब  शांत , न  समस्या , न कोई  हल ,
न  शून्य  काल  में  कोई  हलचल !
हाँ  ,  कभी  कभार ,  किसी  अखबार ,
छप  जाता  है कोई  समाचार ,
और मैं  भी  संतुष्ट  हो  जाता  हूँ ,
चलो  श्राद्ध ही  हो  जाता  है  कभी  कभार !!




  

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