भूलेंगे तेरी भी गुस्ताखियाँ , यारा ,
अब तो सफ़र मंजिल के है क़रीब !
मैं तो भूला हूँ , कामयाबियां भी मेरी ,
होके हल्का , सफ़र से , जाएगा गरीब !
मैं तो उनको हैराँ हूँ , निभाया जिसने भी ,
ऐसा कुछ ख़ास नहीं था , अपना नसीब !
अब चाहे अनचाहे , सब रिश्ते , आर ही हैं ,
पार जायेंगे वोही , जित कारण लटके सलीब !!
अब तो सफ़र मंजिल के है क़रीब !
मैं तो भूला हूँ , कामयाबियां भी मेरी ,
होके हल्का , सफ़र से , जाएगा गरीब !
मैं तो उनको हैराँ हूँ , निभाया जिसने भी ,
ऐसा कुछ ख़ास नहीं था , अपना नसीब !
अब चाहे अनचाहे , सब रिश्ते , आर ही हैं ,
पार जायेंगे वोही , जित कारण लटके सलीब !!
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