Tuesday, 5 March 2013

तुम परमाणू  बनो , धरो कुछ  आग अंतर में ,
निरंतर बहने  दो  उर्जा ,  हृदय में , मन  आत्म में ,
पर बाहर न आने  दो , लहर  भी इक  आन्दोलन  की ,
ब्रह्मास्त्र सा धरो  धीर , रहो , पर चलो न कभी जन में !!

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