तुम परमाणू बनो , धरो कुछ आग अंतर में ,
निरंतर बहने दो उर्जा , हृदय में , मन आत्म में ,
पर बाहर न आने दो , लहर भी इक आन्दोलन की ,
ब्रह्मास्त्र सा धरो धीर , रहो , पर चलो न कभी जन में !!
निरंतर बहने दो उर्जा , हृदय में , मन आत्म में ,
पर बाहर न आने दो , लहर भी इक आन्दोलन की ,
ब्रह्मास्त्र सा धरो धीर , रहो , पर चलो न कभी जन में !!
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