झंझट से कहाँ उबरेंगे , हम लोग दीवाने हैं ,
बिन पेंदे के लोटे हैं , बिन दीवारों के चौखाने हैं !
समझाए कोई कितना भी , भला क्या , बुरा क्या ?
स्वार्थ के दिखते ही , हम बनते फिर सयाने हैं !
इतिहास ने समझाया , हम क्यों हुए थे गुलाम ,
वही कारण , दोहराने को , दुनियाँ को बुलाये हैं !
वही भ्रष्टाचार का व्यापार , वही दुश्मनों को न्योते ,
वही घर के विभीषण , दुनियाँ भर में दौड़ाये हैं !
देश मेरा एक , सोच सबकी नेक , फिर क्यों ,
हर पिछ्वाड़े , देशद्रोही हम छुपाये और पाले हैं !
झंझट से कहाँ उबरेंगे , हम लोग दीवानें हैं ,
बिन पेंदे के लोटे हैं , बिन दीवारों के चौखाने हैं !!
बिन पेंदे के लोटे हैं , बिन दीवारों के चौखाने हैं !
समझाए कोई कितना भी , भला क्या , बुरा क्या ?
स्वार्थ के दिखते ही , हम बनते फिर सयाने हैं !
इतिहास ने समझाया , हम क्यों हुए थे गुलाम ,
वही कारण , दोहराने को , दुनियाँ को बुलाये हैं !
वही भ्रष्टाचार का व्यापार , वही दुश्मनों को न्योते ,
वही घर के विभीषण , दुनियाँ भर में दौड़ाये हैं !
देश मेरा एक , सोच सबकी नेक , फिर क्यों ,
हर पिछ्वाड़े , देशद्रोही हम छुपाये और पाले हैं !
झंझट से कहाँ उबरेंगे , हम लोग दीवानें हैं ,
बिन पेंदे के लोटे हैं , बिन दीवारों के चौखाने हैं !!
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