Thursday, 11 April 2013

झंझट से  कहाँ उबरेंगे , हम लोग दीवाने हैं ,
बिन पेंदे के  लोटे हैं , बिन दीवारों के चौखाने हैं !
समझाए  कोई  कितना भी , भला  क्या ,  बुरा क्या ?
स्वार्थ के  दिखते  ही , हम बनते फिर सयाने हैं !
इतिहास  ने  समझाया ,  हम क्यों हुए थे गुलाम ,
वही कारण ,  दोहराने को , दुनियाँ को बुलाये हैं !
वही भ्रष्टाचार का  व्यापार , वही दुश्मनों को न्योते ,
वही घर के  विभीषण , दुनियाँ भर  में दौड़ाये हैं !
देश  मेरा एक , सोच सबकी नेक , फिर क्यों ,
हर पिछ्वाड़े , देशद्रोही हम छुपाये और पाले हैं !
झंझट से  कहाँ उबरेंगे , हम लोग  दीवानें हैं ,
बिन  पेंदे के लोटे  हैं , बिन  दीवारों के चौखाने  हैं !!

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