बिकती हैं बातें , बिकते हैं सपने , बिकता ज़मीर और बिकता शरीर ,
पिसता पसीना , रिसता लहू , हुनर बन गया अब चापलूसी का गुलाम ,
ये कैसा है वक्त और कैसा विकास , क्या होगा भविष्य , और इतिहास ,
सोचते हैं जब फुर्सत में झंडे के आगे , पूछता है मन , क्यों नेता को सलाम ?
पिसता पसीना , रिसता लहू , हुनर बन गया अब चापलूसी का गुलाम ,
ये कैसा है वक्त और कैसा विकास , क्या होगा भविष्य , और इतिहास ,
सोचते हैं जब फुर्सत में झंडे के आगे , पूछता है मन , क्यों नेता को सलाम ?
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