Wednesday, 10 April 2013

बाजू से , सरक जाना  हवा  सा , सीटियाँ बजाते  हुए ,
वो  समझे , हम  समझ जायेंगे , सरगोशियाँ उनकी !!
ज़ेहन  में , हो रही  थी खरीद  , सब्ज़ी की  तरकारी  की ,
मंडी में , कहाँ समझ जाते , हम सरगोशियाँ  उनकी !!
हर  सिम्त  होहल्ला था , शोर था , खरीद ओ फरोख्त का ,
ऐसे  में मोहब्बत , खुदा ? वाह रे , सरगोशियाँ उनकी !!
जैसे वो  अहमक  थे सनम , हम  भी निकले उतने ही क़रीब ,
सर  ऊपर से गुज़र गयीं , ये  सरगोशियाँ  उनकी !!

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