हर वर्ष उम्र के साथ , इक नई खाल चढ़ती गयी ,
कोई इक एहसास मरता गया , सच से दूरी बढती गयी ,
जागता है कोई भाव तो अब , शक से ' साही ' बन जाते हैं ,
अभ्यागत को बिना परीक्षा , घर से हम दौड़ाते हैं !!
कोई इक एहसास मरता गया , सच से दूरी बढती गयी ,
जागता है कोई भाव तो अब , शक से ' साही ' बन जाते हैं ,
अभ्यागत को बिना परीक्षा , घर से हम दौड़ाते हैं !!
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