Saturday, 6 April 2013

तू सुने तो आवाज़  लगाऊं मैं ,
तू  रुके तो घर आऊँ मैं ,
विवेक हूँ तेरा , खड़ा द्वार तेरे ,
चाहे जगना ?  जगाऊं मैं ?
ये प्रश्न ज़रूरी  है ,
मेरी मजबूरी  है ,
मैं कलयुग का  हूँ  भिखारी ,
लोग मेरी सूरत देखते ही ,
द्वार बंद कर लेते हैं ,
मुख दूसरी ओर कर  लेते हैं ,
लक्ष्मी भी मुझे छोड़ ,
मेरे हन्ता संग खड़ी है ,
कभी लगता  है ,
वह विष्णु से बड़ी है ,
पर भिक्षु का कर्म है ,
हांक लगाना , अलख जगाना ,
चाहे  जगना ? जगाऊं मैं ?
तू सुने तो आवाज़ लगाऊं मैं ?

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