तू सुने तो आवाज़ लगाऊं मैं ,
तू रुके तो घर आऊँ मैं ,
विवेक हूँ तेरा , खड़ा द्वार तेरे ,
चाहे जगना ? जगाऊं मैं ?
ये प्रश्न ज़रूरी है ,
मेरी मजबूरी है ,
मैं कलयुग का हूँ भिखारी ,
लोग मेरी सूरत देखते ही ,
द्वार बंद कर लेते हैं ,
मुख दूसरी ओर कर लेते हैं ,
लक्ष्मी भी मुझे छोड़ ,
मेरे हन्ता संग खड़ी है ,
कभी लगता है ,
वह विष्णु से बड़ी है ,
पर भिक्षु का कर्म है ,
हांक लगाना , अलख जगाना ,
चाहे जगना ? जगाऊं मैं ?
तू सुने तो आवाज़ लगाऊं मैं ?
तू रुके तो घर आऊँ मैं ,
विवेक हूँ तेरा , खड़ा द्वार तेरे ,
चाहे जगना ? जगाऊं मैं ?
ये प्रश्न ज़रूरी है ,
मेरी मजबूरी है ,
मैं कलयुग का हूँ भिखारी ,
लोग मेरी सूरत देखते ही ,
द्वार बंद कर लेते हैं ,
मुख दूसरी ओर कर लेते हैं ,
लक्ष्मी भी मुझे छोड़ ,
मेरे हन्ता संग खड़ी है ,
कभी लगता है ,
वह विष्णु से बड़ी है ,
पर भिक्षु का कर्म है ,
हांक लगाना , अलख जगाना ,
चाहे जगना ? जगाऊं मैं ?
तू सुने तो आवाज़ लगाऊं मैं ?
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