जीवन स्पंदन ,
हुआ , कांख में ,
जैसे कण कोई ,
गिरा आँख में ,
अनजाने में ,
छुआ हाथ नें ,
महसूस हुआ ,
कुछ प्राण है उसमें ,
न देखा ,
न , भाला उसको ,
पल में डर से ,
मसल दिया ,
क्षण में जीवन ,
रीत गया , पल बीत गया !
यही भाव है ,
बुद्धि विनाशक ,
ग्रस्त सभी ,
इससे जीवित जन ,
पशु , शावक ,
हिंसा का यही ,
कारण एक ,
जीत न ले कोई ,
डर यही एक ,
नष्ट करे यह ,
बुद्धि विवेक !!
हुआ , कांख में ,
जैसे कण कोई ,
गिरा आँख में ,
अनजाने में ,
छुआ हाथ नें ,
महसूस हुआ ,
कुछ प्राण है उसमें ,
न देखा ,
न , भाला उसको ,
पल में डर से ,
मसल दिया ,
क्षण में जीवन ,
रीत गया , पल बीत गया !
यही भाव है ,
बुद्धि विनाशक ,
ग्रस्त सभी ,
इससे जीवित जन ,
पशु , शावक ,
हिंसा का यही ,
कारण एक ,
जीत न ले कोई ,
डर यही एक ,
नष्ट करे यह ,
बुद्धि विवेक !!
No comments:
Post a Comment