Monday, 8 April 2013

जीवन स्पंदन ,
हुआ , कांख  में ,
जैसे  कण कोई ,
गिरा आँख में ,
अनजाने में ,
छुआ हाथ नें ,
महसूस हुआ ,
कुछ  प्राण है उसमें ,
न देखा ,
न , भाला उसको ,
पल  में डर से ,
मसल  दिया ,
क्षण में जीवन ,
रीत गया , पल  बीत गया !
यही  भाव  है  ,
बुद्धि विनाशक ,
ग्रस्त  सभी ,
इससे जीवित जन ,
पशु , शावक ,
हिंसा का  यही ,
कारण एक ,
जीत  न  ले कोई ,
डर  यही एक ,
नष्ट करे यह ,
बुद्धि  विवेक !!




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