Wednesday, 7 August 2013

कई  बार  ये  गुनाह  हुआ , मन  मसोस  के  रह  गया  ,
सोचा  था  जिनका  तिरस्कार  करना , स्वागतम बोला  गया !
घर  आये  को  इक  बार  तो ,  आओ  ,  बैठो , कहना  पड़ता  है ,
सदाचार  में  मेहमाँ  ,  जो  बोले  ,  सुनना पड़ता  है  ,
इस  अनचाहे  , निबाह  से  ,  नेता  का  कद  ,  तोला  गया ,
जिसे  हम  चाहते  थे  हराना  ,  उसी  का जयकार  ,  बोला गया !
मन  फिर  मसोस  के  रह  गया , क्यों  हम  इम्तिहान  में  ठुस्स  होते  है ?
जब  जो  करना  हो , नहीं  कर  पाते  हैं  , और भोगते  हैं  अगणित  संताप ,
उन्हीं  देवताओं  के  कोप  ,  जिन्हें  अनचाहे  ,  आसन  ,  हम  देते  हैं ,
और  नेता  बन  ,  चकरघिन्नी  सा  ,  जो  हम्हें  नचाते  हैं ,
बहुत  बार  ये  गुनाह  हुआ  ,  मन  मसोस  के  रह  गया ,
चाहते  थे  जिनका  तिरस्कार  करना ,  स्वागतम  बोला  गया !!

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