Friday, 29 March 2013

भूल  गये  क्यों साथ  तुम्हारे ,  चलता  इक  साया है ,
तुम बचते  फिरते  काँटों  से ,  साए  को  क्यों  उलझाया  है ?
साए  की  किस्मत बंधा  है  तुमसे , है  कैसी यह माया है ,
तुम  स्वतंत्र ,  छाया  परतंत्र ,  अंधियारा क्यों  ये  छाया  है ,
तुम  परमात्म , मेरी आत्म को  क्यों  बख्शी  ये  काया है ,
या  चारों  तरफ प्रकाश  हो ,  या  चारों  तरफ  अँधेरा ,
तब  मैं तुमसे  एक  बनूँगा ,  कैसी  ये  सब  माया  है ??

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