ऐसे ही नहीं ये रंग रंगीन ,
ये मूंछो के नीचे से बजती ,
यूँ ही नहीं बीन ,
यूँ ही नहीं ये आँखें , अखियाँ मारे ,
गुजरा तो होगा गलियों से ,
कोई बांका , कोई हसीन ,
यूँ ही दिल , कोई पागल नहीं उछलने के लिए ,
किसी से वादे तो हुए होंगे संगीन ,
क्यों भाई प्रवीण ?
ये मूंछो के नीचे से बजती ,
यूँ ही नहीं बीन ,
यूँ ही नहीं ये आँखें , अखियाँ मारे ,
गुजरा तो होगा गलियों से ,
कोई बांका , कोई हसीन ,
यूँ ही दिल , कोई पागल नहीं उछलने के लिए ,
किसी से वादे तो हुए होंगे संगीन ,
क्यों भाई प्रवीण ?
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