रंग महल अब भी हैं , अब भी हैं ख़ास ओ आम ,
कौन कहता है बीता ज़माना अभी , अब भी खनकते जाम ,
सूरतें तब भी बदलती थीं , सूरतें अब भी बदलती हैं ,
हर सदी में , बना लेते हैं , चापलूस अपना काम !
अब भी खाता है दिमाग की कमाई कोई ,
कोई लाठी पिस्तौल की धमक खाता है ,
कोई खाता है व्यवहार , व्यापार से , और जी हजूरी से कोई ,
जाति कहाँ बदली ? बदले बस नाम !!
कौन कहता है बीता ज़माना अभी , अब भी खनकते जाम ,
सूरतें तब भी बदलती थीं , सूरतें अब भी बदलती हैं ,
हर सदी में , बना लेते हैं , चापलूस अपना काम !
अब भी खाता है दिमाग की कमाई कोई ,
कोई लाठी पिस्तौल की धमक खाता है ,
कोई खाता है व्यवहार , व्यापार से , और जी हजूरी से कोई ,
जाति कहाँ बदली ? बदले बस नाम !!
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