सृजन हो रहा , काँधे , विसर्जन के ,
और हम खड़े घूर रहे अभ्यागत मौत ,
जीवन मृत्यु , दोनों बहनों को ,
समझ रहे , इक दूजे सम , सौत ,
जान रहे फिर अज्ञानी , चाह रहे , उनका विछोह ,
भोजन चाहते मनभावन , पर चाहते , बिन शौच ,
दूर खड़ा वो राम हमारा , देख के हैरान , ये सब मोह ,
बिना विसर्जन , बचती अब तक , क्या धरा पर इक भी खोह ?
और हम खड़े घूर रहे अभ्यागत मौत ,
जीवन मृत्यु , दोनों बहनों को ,
समझ रहे , इक दूजे सम , सौत ,
जान रहे फिर अज्ञानी , चाह रहे , उनका विछोह ,
भोजन चाहते मनभावन , पर चाहते , बिन शौच ,
दूर खड़ा वो राम हमारा , देख के हैरान , ये सब मोह ,
बिना विसर्जन , बचती अब तक , क्या धरा पर इक भी खोह ?
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