काश मेरे खाल में भी पेड़ों सी होती छाल ,
जिसे छील छील कोई पढ़ता मेरा बीता काल !
जिनपे अंकित होती कुछ वक्त की रीती घड़ियाँ ,
कुछ उपजाती जो , नयी पीढ़ी में नये सवाल !
मेरी भूलों को कुरेद कुरेद , जूझना , सीखती उनसे ,
और दबे सपनों का घुटा देखती झूठा कंकाल !
काम आता मैं भी किसी भोजपत्र की किताब सा ,
दे जाता पल पल के इतिहास का दबा पाताल !
पर ये सब केवल संभावनाएं हैं कोरी , परछाई सी ,
जो मृत हुआ , मृतिका सा निश्चल , हुआ युग काल !!
जिसे छील छील कोई पढ़ता मेरा बीता काल !
जिनपे अंकित होती कुछ वक्त की रीती घड़ियाँ ,
कुछ उपजाती जो , नयी पीढ़ी में नये सवाल !
मेरी भूलों को कुरेद कुरेद , जूझना , सीखती उनसे ,
और दबे सपनों का घुटा देखती झूठा कंकाल !
काम आता मैं भी किसी भोजपत्र की किताब सा ,
दे जाता पल पल के इतिहास का दबा पाताल !
पर ये सब केवल संभावनाएं हैं कोरी , परछाई सी ,
जो मृत हुआ , मृतिका सा निश्चल , हुआ युग काल !!
No comments:
Post a Comment