पेड़ हूँ बंधा हुवा , जड़ से अपनी शर्म की ,
वर्ना भ्रष्ट आंधी ने पाँव थे हिला दिए !
अच्छा हुआ न पैदा हुआ , मानव बन धरा पे आज ,
वर्ना होता मैं भी यार , शर्म से गड़ा हुवा !!
वर्ना भ्रष्ट आंधी ने पाँव थे हिला दिए !
अच्छा हुआ न पैदा हुआ , मानव बन धरा पे आज ,
वर्ना होता मैं भी यार , शर्म से गड़ा हुवा !!
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