Friday, 26 April 2013

बींध  रहा  मन  का  मणका ,
और  घूम  रही  विचार  धुरी ,
मनका मणका ,  चीख रहा ,
क्यों घूम  रही , क्यों  घूम रही ,
जल धन  रे  गया ,
जल  यश  रे  गया ,
जल  काम  गया ,
कुछ  बस  न  रहा ,
हाय ! छोड़  मुझे ,
ये  जग  भी  गया ,
मुझे  न  जाना  रे , पास पिया ,
रम  गया मन  , इस  हास पिया ,
सुन  री धुरी  ,  अरे  सुन  री  धुरी ,
किस  धुन में  तू , घूम  रही ?
रे मन  ,  मैं  तो  बस हूँ ,पास  खड़ी ,
जो  घूम  रही , है विवेक  लड़ी ,
संग में  अपने , तुझे घुमा रही ,
तेरे  अंतर को  है , जगा  रही ,
त्याग  रे  मोह  तू , इस  तन  का ,
बिंध  जाने  दे  मन  का   मणका !!




 

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