कांच का मन ,
रे , बचपन ,
मैं देखूं , सीधे पार ,
माँ , दिखती केवल माँ ,
भाई बंद , अरे , हाँ ,हाँ ,हाँ ,
सब है साफ़ ,
न धब्बा दाग़ ,
यही तो है , जिसे रखते सब ,
सहेज सहेज ,
जिसकी विवेचना से ,
अब है परहेज ,
क्योंकि अब हम बच्चे नहीं ,
इंसान तो हैं , पर सच्चे नहीं !!
रे , बचपन ,
मैं देखूं , सीधे पार ,
माँ , दिखती केवल माँ ,
भाई बंद , अरे , हाँ ,हाँ ,हाँ ,
सब है साफ़ ,
न धब्बा दाग़ ,
यही तो है , जिसे रखते सब ,
सहेज सहेज ,
जिसकी विवेचना से ,
अब है परहेज ,
क्योंकि अब हम बच्चे नहीं ,
इंसान तो हैं , पर सच्चे नहीं !!
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