Tuesday, 10 January 2012

मुझे  आज  भी  हैं याद मानव  के  बाहूबल के  वो  गीत ,
थे  न  जब  कोई  मशीनी हाथ , और  ,
पर्वतों पे ले जानी थी कोई  भारी  सी  चीज़ ,
प्रथम  एक  बोलता  था  मीठी  सी  वाणी ,
तब  सब इकठ्ठा खींचते  थे  और  बोलते  थे  हईसा !!
एक,
तेरे  जोरे  ,
सब,
हईसा !
पर्वत तोड़े ,
हईसा !
झीकी मंजी ,
हईसा !
बाण  पुराना ,
हईसा !
जोर  नी  लांदा ,
हईसा !
हरामी कुलिया ,
हईसा !
धड़ी  धड़ी  खांदा ,
हईसा !
घड़ी  घड़ी जांदा ,
हईसा !
बोली बोलो ,
हईसा !
ताले  खोलो ,
हईसा !
और  देखते  देखते  ,  पत्थर ,  बिजली  के  खम्बे  आदि  सब  ,
पहुँच  जाते  थे  उन  चोटियों  पर  जहाँ  नज़र  भी  नहीं  जाती थी ,
आज  करता  हूँ  उन  सब  हस्तियों  को  सादर  प्रणाम ,
जिनके  प्रयत्न बिना  आज  हम  वहां  नहीं  होते  जहाँ हम  हैं !!

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