Saturday, 14 January 2012

गगन  सम  विशाल  तुम  हो  और  मैं  इक  उड़ती  चिंगारी ,
पर  बुझने  से  पहले  तम  को  क्षण  भर  को  कम  कर  जाऊंगी ,
अपने  पल  भर  के  जीवन  को  कम  नहीं  आंकती  मैं ,
ज्वाला  का  कण  भर  टुकड़ा  हूँ , पर  तम पर  भारी  हूँ  मैं ,
अपने  क्षण भर  के  जीवन  में  ,  कुछ  सिखला जाऊंगी  , 
दिखला  जाऊंगी  रण  कैसे  जीते  जाते  हैं  ,  जरा  रणभेरी  बजाओ ,
मुझे  नहीं  डर  अँधेरा  छाएगा  फिर  मेरे  बुझने  पर ,
फिर  पैदा  होगा  कोई  कण  अंगार  लिए  , फैलाएगा  जो  जग उजियारा ,
मुझे  मोह  नहीं  अपने  जीवन  से  कुछ , न  डर  प्रलय  के  बाद  होगा  क्या ,
मुझे  तो  कर्म  करना  है  अपना  ,  जिस  कारण  जन्म हुआ  मेरा ,
शेष  तो  मेरी  फिर  कोई  न  कोई  माथे  पर  तिलक  करेगा ,
और  जन  जन  को , राख  हुए  जीवन  से ,  आलोकित  करता  जाएगा !!

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