गगन सम विशाल तुम हो और मैं इक उड़ती चिंगारी ,
पर बुझने से पहले तम को क्षण भर को कम कर जाऊंगी ,
अपने पल भर के जीवन को कम नहीं आंकती मैं ,
ज्वाला का कण भर टुकड़ा हूँ , पर तम पर भारी हूँ मैं ,
अपने क्षण भर के जीवन में , कुछ सिखला जाऊंगी ,
दिखला जाऊंगी रण कैसे जीते जाते हैं , जरा रणभेरी बजाओ ,
मुझे नहीं डर अँधेरा छाएगा फिर मेरे बुझने पर ,
फिर पैदा होगा कोई कण अंगार लिए , फैलाएगा जो जग उजियारा ,
मुझे मोह नहीं अपने जीवन से कुछ , न डर प्रलय के बाद होगा क्या ,
मुझे तो कर्म करना है अपना , जिस कारण जन्म हुआ मेरा ,
शेष तो मेरी फिर कोई न कोई माथे पर तिलक करेगा ,
और जन जन को , राख हुए जीवन से , आलोकित करता जाएगा !!
पर बुझने से पहले तम को क्षण भर को कम कर जाऊंगी ,
अपने पल भर के जीवन को कम नहीं आंकती मैं ,
ज्वाला का कण भर टुकड़ा हूँ , पर तम पर भारी हूँ मैं ,
अपने क्षण भर के जीवन में , कुछ सिखला जाऊंगी ,
दिखला जाऊंगी रण कैसे जीते जाते हैं , जरा रणभेरी बजाओ ,
मुझे नहीं डर अँधेरा छाएगा फिर मेरे बुझने पर ,
फिर पैदा होगा कोई कण अंगार लिए , फैलाएगा जो जग उजियारा ,
मुझे मोह नहीं अपने जीवन से कुछ , न डर प्रलय के बाद होगा क्या ,
मुझे तो कर्म करना है अपना , जिस कारण जन्म हुआ मेरा ,
शेष तो मेरी फिर कोई न कोई माथे पर तिलक करेगा ,
और जन जन को , राख हुए जीवन से , आलोकित करता जाएगा !!
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