Thursday, 19 January 2012

गाते  हो  तुम  तो  सूरत  तुम्हारी  बिसर  जाती  है  ,
और  नाचते  हो  जब  , दुनियाँ  दिखती  नहीं  ,
कभी  तुम  गायब  कभी  दुनियाँ  ,
लगता  है  पागल  हो  जाऊंगा  मैं !!

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मेरी  परेशानी  गूंजे  वादियों  में  , और  उनकी  चैन  की  बंसी  ,
मनोरंजन  घाटियों  में  , सैलानियों  का  खूब  होता  है  !!

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वो  साधू  हैं  और  हम  लुटेरे  ,
पर  राह  दोनों  की  जहाँ  में  ,काँटों  भरी  है  ,
चूक  हो  जाए  तो  मुझको  कोड़े  ,
और  उनको  दोज़ख  का  डर  सताता  है !!

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मैं  अपने  सोच  सब  ,तुमको  , दे  तो  दूं  , पर  मरुस्थल  में  ,
पानी  की  जगह  , काँटों  का  जंगल  उग  आये  तो  क्या  कीजे  ?
मेरी  गहराई  तो  , हाथों  की  हथेली  से  भी  कम  है  ,
तेरे  मन  के  चेहरे  को  न  ढक  पाए  तो  क्या  कीजे ?
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मुझे  नफरतें  हैं  मेरे  होने  से  , मेरा  होना  ही  इक  जंग  है  ,
ये  जंग  जो  पैदा  खुदा  ने  की  , अब  निपटे  भी  तो  अच्छा  है !!

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शायद  मैं  तेरे  नाम  से  डरता  हूँ  ,
जपता  हूँ  जब  भी  , सुनता  हूँ  तेरा  नाम  !
जाने  क्यों  धुंध  सी  लिपटी  है  , आँखों  पे  मेरी  ,
हटती  है  जब  भी  ,दिखता  तेरा  नाम  !
दिखता  है  असर  औरों  पर  भी  साए  का  तेरे  ,
पूछा  अजनबी  से  ,ले  गया  तेरा  नाम  !!

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