वो खरीददार हैं मेरे , रोटी के मोल में ,
उनको पता नहीं है , भूख बाँदी है मेरी !
वो समझते हैं सेठ खुद को , पैसा बहुत है पास ,
मैं समझूँ सेठ मैं हूँ , ज़मीर बिकता नहीं मेरा !!
.....................................................................
उलझे हैं सुलझों के हालात , पर समझाए कौन ,
उनको तो वहम है , खुदा , उनके ही दम पर है खुदा !!
...................................................................
चिढ़ा आया हूँ मुकद्दर को , करले जो करना है ,
अब छिपने की जगह देखूं , मुझे मिलती कहाँ है !
..................................................................
मुझे डर है ज़माने में अब वक्त न बचा शेष ,
जिससे भी पूछें कहे वक्त नहीं है !!
जिस गति से हो रहा विकास हैरानी है मुझको ,
लगता है विकास होने को है बाकी बहुत और समय नहीं है !!
पर शक है मुझे अबके घूमेंगा न चक्कर ,
गिरेगी सीधे ही ये रचना अब औंधे मुंह होकर !!
जिस गति से हो रहा विकास , विनाश भी होगा ,
और जो होगा ज़मीं पर अब पलक झपकते ही होगा !!
No comments:
Post a Comment