Wednesday, 18 January 2012

दुःख  ,
बस  गया  ,
दिल  में  !
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सुख  ,
रच  गया  ,
दिल  में  !
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सुख  दुःख  ,
भिड़े  दोनों  ,
आपस  में  !
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और  ,
दोनों  ने  ,
मैदान  मार  लिया  !!

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गुनाहगार  को  बख्शो  और  सज़ा  दो  इमाँ  के  तलबगार  को  ,
तब्दीलियाँ  कैसी  ये  आई  हैं  जहां  में  मेरे  ?

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खुदाओं  से  कहदो  , हवाओं  से  परहेज़  करें   ,
उल्टी  भी  बहतीं  है  ये  बहुत  बार  !!

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वो  उड़ाना  चाहते  हैं  मछलियों  को  आसमान  में  सीधे  ही  ,
अरे , मेंढक  तो  उन्हें  पहले , बना  लो  मेरे  यार  !!
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वो  मछलियों  को  चाहें  , 
पानी  में  न  तैर  ,  पेड़ों  पे  चढ़ें !
फिर  बोलेंगे ,  नालायक  ,
इतना भी  नहीं  आता ?
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मछलियाँ  , 
पहले भी  उड़ीं  हैं  आसमान में  पंछी  बन ,
पर  जब  चाहा  उन्होंनें खुद  ये ,
जीवन  समंदर  ही  से  तो  आगे  चला है  कभी ,
पर  समझे  कौन ?
इसमें  सदियाँ  हैं  लगीं ,
और  अनंत  जीवन  की  आहुतियाँ  हुयीं !!
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धुनकी  ने  धुनी  कपास  ,
जुलाहे  ने  बुनी ,
रंगरेज़  ने  रंगा  मन  से  कपड़ा ,
ज़रदोज़  ने टांकी  ,  चाँदी  सोने  की  ज़री ,
तब  दुल्हन  की  ज़रीदार साड़ी  बनी ,
और  मुनाफ़ा  सब बाज़ार  में  बंटा ,
लुटे  रह  गये ,धुनकी ,
जुलाहा , रंगरेज़  और  ज़रदोज़  सभी !!   
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