दुःख ,
बस गया ,
दिल में !
........................
सुख ,
रच गया ,
दिल में !
...................
सुख दुःख ,
भिड़े दोनों ,
आपस में !
........................
और ,
दोनों ने ,
मैदान मार लिया !!
...................................................
गुनाहगार को बख्शो और सज़ा दो इमाँ के तलबगार को ,
तब्दीलियाँ कैसी ये आई हैं जहां में मेरे ?
.....................................................................................
खुदाओं से कहदो , हवाओं से परहेज़ करें ,
उल्टी भी बहतीं है ये बहुत बार !!
....................................................
वो उड़ाना चाहते हैं मछलियों को आसमान में सीधे ही ,
अरे , मेंढक तो उन्हें पहले , बना लो मेरे यार !!
................................................................................
वो मछलियों को चाहें ,
पानी में न तैर , पेड़ों पे चढ़ें !
फिर बोलेंगे , नालायक ,
इतना भी नहीं आता ?
..........................................................
मछलियाँ ,
पहले भी उड़ीं हैं आसमान में पंछी बन ,
पर जब चाहा उन्होंनें खुद ये ,
जीवन समंदर ही से तो आगे चला है कभी ,
पर समझे कौन ?
इसमें सदियाँ हैं लगीं ,
और अनंत जीवन की आहुतियाँ हुयीं !!
.................................
धुनकी ने धुनी कपास ,
जुलाहे ने बुनी ,
रंगरेज़ ने रंगा मन से कपड़ा ,
ज़रदोज़ ने टांकी , चाँदी सोने की ज़री ,
तब दुल्हन की ज़रीदार साड़ी बनी ,
और मुनाफ़ा सब बाज़ार में बंटा ,
लुटे रह गये ,धुनकी ,
जुलाहा , रंगरेज़ और ज़रदोज़ सभी !! ...................................................................
बस गया ,
दिल में !
........................
सुख ,
रच गया ,
दिल में !
...................
सुख दुःख ,
भिड़े दोनों ,
आपस में !
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और ,
दोनों ने ,
मैदान मार लिया !!
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गुनाहगार को बख्शो और सज़ा दो इमाँ के तलबगार को ,
तब्दीलियाँ कैसी ये आई हैं जहां में मेरे ?
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खुदाओं से कहदो , हवाओं से परहेज़ करें ,
उल्टी भी बहतीं है ये बहुत बार !!
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वो उड़ाना चाहते हैं मछलियों को आसमान में सीधे ही ,
अरे , मेंढक तो उन्हें पहले , बना लो मेरे यार !!
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वो मछलियों को चाहें ,
पानी में न तैर , पेड़ों पे चढ़ें !
फिर बोलेंगे , नालायक ,
इतना भी नहीं आता ?
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मछलियाँ ,
पहले भी उड़ीं हैं आसमान में पंछी बन ,
पर जब चाहा उन्होंनें खुद ये ,
जीवन समंदर ही से तो आगे चला है कभी ,
पर समझे कौन ?
इसमें सदियाँ हैं लगीं ,
और अनंत जीवन की आहुतियाँ हुयीं !!
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धुनकी ने धुनी कपास ,
जुलाहे ने बुनी ,
रंगरेज़ ने रंगा मन से कपड़ा ,
ज़रदोज़ ने टांकी , चाँदी सोने की ज़री ,
तब दुल्हन की ज़रीदार साड़ी बनी ,
और मुनाफ़ा सब बाज़ार में बंटा ,
लुटे रह गये ,धुनकी ,
जुलाहा , रंगरेज़ और ज़रदोज़ सभी !! ...................................................................
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