फूल बिन पत्तियों के सजेंगे क्या ?
झरनें बिना ऊंचाई के गिरेंगे क्या ?
नदियाँ बिना किनारे बहेंगी क्या ?
समंदर बिना लहर जियेगा क्या ?
पक्षी बिना हवा के उडेंगे क्या ?
पर्वत बिना मैदान जंचेंगे क्या ?
तारे बिना आसमान ठहरेंगे क्या ?
दिन बिना रात बचेगा क्या ?
फिर हम ही दो बचे हैं क्यों , लड़ने के लिए ?
हम भी कोई ऐसा जोड़ा , बन जाते क्यों नहीं ?
हम भी प्रकृति से सीख लें जीना साथ साथ ,
फिर स्वर्ग चाहिए किसे , मानव , इस सृष्टि में ?
झरनें बिना ऊंचाई के गिरेंगे क्या ?
नदियाँ बिना किनारे बहेंगी क्या ?
समंदर बिना लहर जियेगा क्या ?
पक्षी बिना हवा के उडेंगे क्या ?
पर्वत बिना मैदान जंचेंगे क्या ?
तारे बिना आसमान ठहरेंगे क्या ?
दिन बिना रात बचेगा क्या ?
फिर हम ही दो बचे हैं क्यों , लड़ने के लिए ?
हम भी कोई ऐसा जोड़ा , बन जाते क्यों नहीं ?
हम भी प्रकृति से सीख लें जीना साथ साथ ,
फिर स्वर्ग चाहिए किसे , मानव , इस सृष्टि में ?
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