Monday, 16 January 2012

फूल  बिन  पत्तियों  के  सजेंगे क्या ?
झरनें बिना  ऊंचाई  के  गिरेंगे  क्या  ?
नदियाँ  बिना  किनारे  बहेंगी  क्या  ?
समंदर  बिना  लहर  जियेगा  क्या  ?
पक्षी  बिना  हवा  के  उडेंगे  क्या  ?
पर्वत  बिना  मैदान  जंचेंगे  क्या   ?
तारे  बिना  आसमान  ठहरेंगे  क्या  ?
दिन  बिना रात  बचेगा  क्या  ?
फिर  हम  ही  दो  बचे  हैं  क्यों  ,  लड़ने  के  लिए  ?
हम  भी  कोई  ऐसा  जोड़ा  ,  बन  जाते  क्यों  नहीं  ?
हम  भी  प्रकृति  से  सीख  लें  जीना  साथ  साथ  ,
फिर  स्वर्ग  चाहिए  किसे , मानव  ,  इस  सृष्टि  में  ?   

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