जिस्म में मेरे रूह डालो नयी ,
मेरी आज़ादियाँ अब बेमानी हुईं !
सब सच अब नंगे हुए ज़माने के ,
सिर्फ दूध की ख़ातिर तू माँ बोले मुझे !
मेरी आज़ादी का मतलब महज़ , आज़ादी , था तेरी ,
उनका ताज अपने सर रखने के लिए !
नुचने वाली रियाया आज भी लुटती है ,
आज भी अस्मत मेरी टके , टके बिकती है !
जिस्म में मेरे रूह डालो नयी ,
मेरी आज़ादियाँ अब बेमानी हुईं !!
उम्मीद करूँ कुछ क्या ? नौजवानों से आज ?
मिलेंगे बेटे , कुछ नया खून लिए ?
जो माँ से बांधेंगे गर्भ नाल दुबारा ,
जानेंगे माँ के अर्थ हैं क्या ?
मुझे फिर से चाहिए सुभाष , भगत सिंह ,
फिर से चाहिए प्राण औ प्रण तुम्हारा !
पर पहले करना होगा गुलामी का रक्तमोक्षण ,
बहाना होगा भ्रष्टाचार , गंदे नालों में !
तुम्हें सुधारना भी है और सुधरना भी है ,
करूँ उम्मीद क्या कुछ ? नहीं तो दोहराती हूँ !
हा ! मिली क्यों आज़ादी मुझे , क्यों हाथ बदले गये ?
मेरी आज़ादियाँ अब बेमानी हुईं , बेमानी हुईं !!
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