Wednesday, 25 January 2012


जिस्म   में   मेरे   रूह   डालो   नयी  ,
मेरी   आज़ादियाँ  अब   बेमानी   हुईं !
सब   सच   अब   नंगे   हुए   ज़माने   के  ,
सिर्फ   दूध   की  ख़ातिर   तू   माँ  बोले  मुझे  !
मेरी   आज़ादी   का  मतलब   महज़ ,  आज़ादी ,  था   तेरी  ,
उनका   ताज   अपने   सर   रखने   के  लिए  !
नुचने   वाली   रियाया   आज   भी   लुटती   है  ,
आज   भी   अस्मत   मेरी   टके   ,  टके   बिकती   है  !
जिस्म   में   मेरे   रूह   डालो   नयी  ,
मेरी   आज़ादियाँ   अब   बेमानी   हुईं  !!
उम्मीद  करूँ  कुछ  क्या  ?  नौजवानों से  आज ?
मिलेंगे  बेटे ,  कुछ नया  खून  लिए ?
जो  माँ  से  बांधेंगे  गर्भ  नाल  दुबारा  ,
जानेंगे  माँ के  अर्थ  हैं  क्या  ?
मुझे  फिर  से  चाहिए  सुभाष ,  भगत  सिंह ,
फिर  से  चाहिए  प्राण  औ  प्रण  तुम्हारा !
पर  पहले करना  होगा गुलामी  का  रक्तमोक्षण  ,
बहाना  होगा  भ्रष्टाचार ,  गंदे नालों  में !
तुम्हें  सुधारना  भी  है  और  सुधरना  भी  है ,
करूँ  उम्मीद क्या  कुछ ?  नहीं  तो  दोहराती  हूँ  !
हा !  मिली  क्यों  आज़ादी मुझे  , क्यों  हाथ  बदले  गये ?
मेरी  आज़ादियाँ  अब  बेमानी  हुईं ,  बेमानी  हुईं  !!


  

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