Thursday, 19 January 2012


चलो ,   मैं   भाग   जाऊं   आज   सारे   तनावों   से  ,
चलो ,   मैं   भाग   जाऊं   आज   सारे   गुनाहों   से  ,
चलो   ,  चलें   ,  कोई   रंगीन   सपना   बुने  ,
चलो   , चलें   ,  किसी   हसीं   दुनियाँ   में   चलें  ,
तुमको   तो   ,  सिखादूं   दौड़ना   पर्वत   पर  ,
तुमको   तो   ,  दिखादूं   मैं  चाँद   का   घर  ,
हसीं   तारे   नज़ारे   संग   संग   ले   चलूँगा   मैं  ,
विदा   हवाओं   को   कर   ,  बादलों   को  ले   उडूँगा   मैं  ,
ये   मेरा   इन्द्रधनुष   सुन्दर  , खड़ा   है   इंतजार   में   आज  ,
ये   मेरा   दिल   करे   ,  क्यों   न   झूला   डाल   दूं   इसपर  ,
आ   बारिश   में   कीचड़   उछालें   सफ़ेद   धोती   पर  ,
आ   शरारत   करके   बूढ़े   से   ,  भाग   लें   छतपर  ,
खींचें   डगमगाते   विश्वास   की   ज़ंजीर   खुलकर   ,
मन   के   अंधेरों   को   उजालों   से   बदल   लें   चलकर   ,
और   शरद   में   ग्रीष्म   का   एहसास   करलें   क्यों   न   आज  ,
आओ   बंधू   चलो   झांकें   ,  बचपन   के   निश्छल   मन   में   आज  ,
आ   तुमको   भी   छुड़ा दूं     इन   तनावों   से   ,
आ   तुमको   भी   भगादूं     आसमान   में   आज  !!

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