Tuesday, 24 January 2012

मैं  तो  इठला  के  चलूंगी  यौवन  में , जी  तेरा  जले  तो  जले ,
आग  हूँ  जंगल  को जलाती  हूँ ,चिंगारी  से ,  बस  तेरा  कोई  न  चले !
उछालूँ  दुपट्टे  को  धुवें  की  तरह ,  हर  पल  शक्ल चिढ़ाए  तेरी ,
क़दमों  में  मेरे  बिछे  तू  सड़क  की  तरह , जिसपे  मेरी  अम्पाला  चले !
हर  इशारे  पे  मेरे , मजनूँ  दौड़ें  इधर  उधर , और  हैराँ  हो  तेरी  नज़र ,
तू  चले  लट्ठ को  हाथों  में  पकड़ , पर  सिवा  झाड़ी , और  पे  बस  न  चले !
तेरी  जायदाद  को जिसको  तू  सिर्फ  अपना  समझे , नचाती  चलूँ ,
और  झुठलाती  रहूँ  सबको  नेताओं  के  वादों  की  तरह , तेरा सांस  चले  न  चले !!      

            

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