Friday, 6 January 2012


आज  ग़मों  की  बरसात  जम  के  हुयी  , पर  भीगे  वही  जिनके  गम  थे  !
अपनी  तो  आँखें  नाम  थी  , उनकी  आँखों  से  बरसात  हुई  , भीगे  हम  थे  !!

जिनको  टाला  नहीं  जा  सकता  होनी  की  तरह  ,
अक्स  ख़्वाबों  में  हैं  उभरे  उनके  ऐसे  ,
मैं  भी  इल्ज़ाम  रातों  पे  धरता  हूँ  हमेशा  की  तरह  ,
और  बेखटके  सो  जाता  हूँ  उनके  जैसे  !!

जाम  उनके  हिस्से  का  भी  पी  जाता  हूँ  ,
उनकी  सेहत  का  ख्याल  ,बराबर  है  मुझे  !!
रंग  चेहरे  से  न  उनके  जाए  ,
बद्द्दुआ  सारी अपने  चेहरे  पे  लिखवा  लाया  हूँ  !!

वो  मेरी  मेहरबानियों  को  गुनाहों  की  शक्ल  दे  आया  है  ,
अब  देखते  हैं  खुदा  कितना  खुदा  होता  है  !!

आसमानों  पे  चमका  कोई  , और  तारा  मेरा  हुआ , कहते  हैं ,
यूँ  उम्र  सारी  , उसे  अँधेरा  देता  रहा  हो  चाहे  !!
ये  ज़मीं  , आसमाँ  सारे  , चापलूसों  ने  नाम  अपने  कराये  यूँ  ,
हर  तारे  के  करीब  उनका  ही  घेरा  है  !!

जम  के  बरसा  है  कोई  , मेरे  मन  आँगन  में  ,
दिल  से  आंच  भी  आती  है  कोई  , तो  ठंडी  ही  आती  है  अब  !!

चाहता  तो  नहीं  हूँ  मैं , जल  जाए  वो  ,
पर  पेट्रोल  सा  बदन  और  दिमाग  में  गर्मी  लिए  घूम  रहा  है  वो  !
आँख  से  रगड़  भर  दो  तुम  , माचिस  की  तीली  जैसे  ,
पल  में  स्वाहा  होने  में  , देर  ही  कितनी  है  ?
और  मैं  बदन  को  अपने पानी  का  चश्मा  किये  , बर्फ  को  सर  पे  लपेटे  हूँ  ,
अंगार  भी  आये  कोई  ,तो  बुझ  के  चला  जाता  है  !!

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