Monday, 2 January 2012

मेरी  नज़र  भर  को  तरसेगा  तू ,  मुझसे आँखें  चुराने  वाले ,
मांगे  न  ये  ज़माने  से  कुछ ,  बस  सही  को  सही  कहती  हैं !
तेरे  हाथों में  ज़न्नत  है अभी ,  उसे  तू  खोना  नहीं  चाहे , और ,
मैं  जानता  हूँ  ,  जहाँ  से  रुखसत  के  वक्त हाथ  ख़ाली  तेरे  होंगे !
मेरे  हाथ  ख़ाली  हैं  ,  और  ख़ाली  मैं  चाहता  हूँ   हर  वक्त ,
कुछ  छूटने  का , टूटने  का  गम , मुझसे  अच्छा कौन  जानेगा !!



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वो  बद  लफ्फाजी  जो  करते थे ,  मीठा  बोलते  हैं  अब  सब ,
मेरे  बंद  होंठों  और  आँखों  ने , उन्हें  सब समझा  दिया है अब !
तड़पते  वो  ज़मानें  में कब  तक ,  और  तरसता मैं भी  कब तक ,
लहूलुहान करती  ठोकरों ने  , ज़िन्दगी  का  खोला  है  सब  सच !
अब  भलाई  सच  को  मान  लेने  के  अलावा होती  तो  क्या  होती ?
उन्होंने  मेरी  ख़ुदाई  को , मैंने  उनकी  ख़ुदाई को माना है अब सच !!

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