मेरी नज़र भर को तरसेगा तू , मुझसे आँखें चुराने वाले ,
मांगे न ये ज़माने से कुछ , बस सही को सही कहती हैं !
तेरे हाथों में ज़न्नत है अभी , उसे तू खोना नहीं चाहे , और ,
मैं जानता हूँ , जहाँ से रुखसत के वक्त हाथ ख़ाली तेरे होंगे !
मेरे हाथ ख़ाली हैं , और ख़ाली मैं चाहता हूँ हर वक्त ,
कुछ छूटने का , टूटने का गम , मुझसे अच्छा कौन जानेगा !!
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वो बद लफ्फाजी जो करते थे , मीठा बोलते हैं अब सब ,
मेरे बंद होंठों और आँखों ने , उन्हें सब समझा दिया है अब !
तड़पते वो ज़मानें में कब तक , और तरसता मैं भी कब तक ,
लहूलुहान करती ठोकरों ने , ज़िन्दगी का खोला है सब सच !
अब भलाई सच को मान लेने के अलावा होती तो क्या होती ?
उन्होंने मेरी ख़ुदाई को , मैंने उनकी ख़ुदाई को माना है अब सच !!
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मांगे न ये ज़माने से कुछ , बस सही को सही कहती हैं !
तेरे हाथों में ज़न्नत है अभी , उसे तू खोना नहीं चाहे , और ,
मैं जानता हूँ , जहाँ से रुखसत के वक्त हाथ ख़ाली तेरे होंगे !
मेरे हाथ ख़ाली हैं , और ख़ाली मैं चाहता हूँ हर वक्त ,
कुछ छूटने का , टूटने का गम , मुझसे अच्छा कौन जानेगा !!
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वो बद लफ्फाजी जो करते थे , मीठा बोलते हैं अब सब ,
मेरे बंद होंठों और आँखों ने , उन्हें सब समझा दिया है अब !
तड़पते वो ज़मानें में कब तक , और तरसता मैं भी कब तक ,
लहूलुहान करती ठोकरों ने , ज़िन्दगी का खोला है सब सच !
अब भलाई सच को मान लेने के अलावा होती तो क्या होती ?
उन्होंने मेरी ख़ुदाई को , मैंने उनकी ख़ुदाई को माना है अब सच !!
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