Monday, 30 January 2012

बसंत  में  फूलों  को  तरसता  हूँ  ,
और  सावन  में  रिमझिम  को  ,
उसने  नए  कोई  मौसम  , बना  लिए  हैं  शायद !
आज  भी  इंतज़ार  में  हूँ ,
भूले  से ही  सही  याद  आऊँगा  मैं  ,
पर   लगता  है  रिश्ते  नए उसने  बनाए  हैं   शायद  !!  

........................
हाय  से  तन  की  लगी  को  ,
और  आह  से  मन  की  लगी  को ,
जान  जाते  लोग  ,
इसलिए  हौले  हौले  ,
बिना  अपना  मुंह  खोले  ,
मुस्कुराने  लगा  मैं  !!
...................
बहे  जाते  हैं  वो  सब  , एक ही  रौ  में  ,
उनसे  अलग  भी  है  सच  , मानते  नहीं  !!
....................
नीलाम  हो  गया  ईमान  , चाहतों  के  असर  से  ,
चाहतों  की  नीलामियाँ  सर -ऐ -आम  हो  गयीं  !!
................................
मैं  पत्तियों  में  ढूंढूं  जड़  का  सुराग  ,
और  इश्वर  नहीं  है  , उद्घोष  , कर  आता  हूँ  !!
............................
विश्लेश  किये  मैंने  , अपने  प्रति  , अपने  ही  कोण  से  ,
जबकि  दिखती  है  मूरत  मेरी  हर  बार  अलग  , अलग  कोण  से  !!
..............................
उदास  है  काएनात  , और  ख़ुदा  भी  उदास  ,
आज  इंसानियत  फिर  गारत  हुयी  ख़ुदा  के  नाम  पे !!

...........................

लगायी  भी  मैंने  बुझाई  भी  मैंने  ,
ये  आग  दिल  की  थी  ही  कुछ  ऐसी  !

No comments:

Post a Comment