बसंत में फूलों को तरसता हूँ ,
और सावन में रिमझिम को ,
उसने नए कोई मौसम , बना लिए हैं शायद !
आज भी इंतज़ार में हूँ ,
भूले से ही सही याद आऊँगा मैं ,
पर लगता है रिश्ते नए उसने बनाए हैं शायद !!
........................
हाय से तन की लगी को ,
और आह से मन की लगी को ,
जान जाते लोग ,
इसलिए हौले हौले ,
बिना अपना मुंह खोले ,
मुस्कुराने लगा मैं !!
...................
बहे जाते हैं वो सब , एक ही रौ में ,
उनसे अलग भी है सच , मानते नहीं !!
....................
नीलाम हो गया ईमान , चाहतों के असर से ,
चाहतों की नीलामियाँ सर -ऐ -आम हो गयीं !!
................................
मैं पत्तियों में ढूंढूं जड़ का सुराग ,
और इश्वर नहीं है , उद्घोष , कर आता हूँ !!
............................
विश्लेश किये मैंने , अपने प्रति , अपने ही कोण से ,
जबकि दिखती है मूरत मेरी हर बार अलग , अलग कोण से !!
..............................
उदास है काएनात , और ख़ुदा भी उदास ,
आज इंसानियत फिर गारत हुयी ख़ुदा के नाम पे !!
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और सावन में रिमझिम को ,
उसने नए कोई मौसम , बना लिए हैं शायद !
आज भी इंतज़ार में हूँ ,
भूले से ही सही याद आऊँगा मैं ,
पर लगता है रिश्ते नए उसने बनाए हैं शायद !!
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हाय से तन की लगी को ,
और आह से मन की लगी को ,
जान जाते लोग ,
इसलिए हौले हौले ,
बिना अपना मुंह खोले ,
मुस्कुराने लगा मैं !!
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बहे जाते हैं वो सब , एक ही रौ में ,
उनसे अलग भी है सच , मानते नहीं !!
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नीलाम हो गया ईमान , चाहतों के असर से ,
चाहतों की नीलामियाँ सर -ऐ -आम हो गयीं !!
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मैं पत्तियों में ढूंढूं जड़ का सुराग ,
और इश्वर नहीं है , उद्घोष , कर आता हूँ !!
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विश्लेश किये मैंने , अपने प्रति , अपने ही कोण से ,
जबकि दिखती है मूरत मेरी हर बार अलग , अलग कोण से !!
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उदास है काएनात , और ख़ुदा भी उदास ,
आज इंसानियत फिर गारत हुयी ख़ुदा के नाम पे !!
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