क़त्ल मेरा हो पर गिला न हो ज़मानें से ,
अख्तियार मेरी जिंदगी के सब , उसने अपने नाम किये !
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जिंदगी मेरी होगी पर उसूल उनके ,
अजब दारोमदार तूने पैदा किये ज़माने में !
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शैतानियों का सिला देता है तू , क्या मालूम ?
हमें , तो सिर्फ कैक्टस , बिना पानी जिंदा मिले !
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जो पेड़ फल देता , पत्थर महज़ उसको पड़ा ,
ज़हरीले कनेर सदा हस्ते मिले , खिलते मिले !!
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जवानियाँ जिस अंदाज़ में आती हैं , जाती भी हैं ,
ठहरा हुवा बुढ़ापा तो बस , मौत का इंतज़ार करे !!
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रोशनियाँ सर झुकाए खड़ी हैं अब ,
उन्होंनें भी तो , अँधेरे का सिर्फ इंतज़ार किया !!
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रौशनी को अँधेरे से लड़ना कभी आया ही नहीं ,
बचा के रखती , सवेरा कभी , अँधेरे के लिए !!
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भँवरे को जिंदगी में कभी सज़ा न हुयी ,
फूल पे सदा आया इलज़ाम , सर -ऐ -आम , रंग क्यों खिलाये तूने ?
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चांदियों के शहर में , सोना टके में बिका ,
कोई ना बोला गवाह , के सोना सदा महंगा हुआ !!
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ज़नाज़े पे उसके रो आया था वो ,
क़र्ज़ सारे जिंदगी के , से , बरी हो आया था वो !!
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किनारों की थी गलतियां वो सहारे बने ,
अब मार जिंदगी भर की है , कटना हमेशा का है !!
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गम ना कर कटना जिंदगी भर का है ,
समंदर भी बिन तेरे होता कहाँ ?
समंदर में तो जाना घड़ी भर का है महज़ ,
जिंदगी तो बसर होगी तेरे साए में !!
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शाम ओ सहर दोनों को तेरा इंतज़ार है ,
इक का दिन नहीं कटता , दूसरे की रात !!
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तेरा चेहरा ग़मज़दा क्यों है ?
क्यों परेशान है अपनी गुस्ताख़ियों से तू ?
मैं तो शिकायतें तेरी करता नहीं ,
जानता हूँ तेरा राज़ हूँ मैं !!
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विरासतें भी हैं मेरी ज़मानें में ,
पर हक़ ? अहसान फ़रामोश क्या जानें !!
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समंदर है गहरा कितना ?
जानता है तो सिर्फ पानी जो तल में है ,
लंबा है ये जीवन कितना ?
जानता है , जिया जिसने , हर पल को है !!
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साथी ज़रा पास तो आ तू मेरे ,
बता उंगलियाँ कितनी हाथों में ?
ज़रा छुवन का अहसास तो दे ,
आया बसंत , कोई गुल तो खिले !!
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चुनावों की सरगर्मियां , मेरे अन्दर भी हैं ,
पर हर पल जो जिया है मैंने , सदियों का गुनाहगार लगे !!
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सितारे भी हैं , पर सिर्फ रात आने पे चमकते हैं ,
तू भी ठहर , रात आने दे ज़रा ,
फिर चमक लेना , मन की सुबह होनें तक !!
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न घबरा तेरे तारों को भी आसमान थामेंगा ,
बस पैर ज़मीं पर रख अपने !!
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शाम ही है जो सुकूँ देती है ,
दिन को तो तेरे नखरे भी , आसमान छूते हैं !!
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समंदर को तो हिला मैं भी देता ,
पर मछलियों की तरह बेखटके नहीं !
मेरी जान तो है किनारों पे ,
किनारों से गिले मिटाऊँ ज़रा !!
समंदर को तो हिला मैं भी देता ,
पर मछलियों की तरह बेखटके नहीं !
मेरी जान तो है किनारों पे ,
किनारों से गिले मिटाऊँ ज़रा !!
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