Sunday, 29 January 2012


क़त्ल   मेरा   हो   पर   गिला   न   हो   ज़मानें   से   ,
अख्तियार   मेरी   जिंदगी   के   सब   ,  उसने   अपने   नाम   किये   !
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जिंदगी   मेरी   होगी   पर   उसूल   उनके  ,
अजब   दारोमदार   तूने   पैदा   किये   ज़माने   में   !
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शैतानियों   का   सिला   देता   है   तू   ,  क्या   मालूम  ?
हमें   ,  तो   सिर्फ   कैक्टस   ,  बिना   पानी   जिंदा   मिले   !
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जो   पेड़   फल   देता   ,  पत्थर   महज़   उसको   पड़ा   ,
ज़हरीले   कनेर   सदा   हस्ते   मिले   ,  खिलते   मिले  !!
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जवानियाँ   जिस   अंदाज़   में   आती   हैं ,  जाती   भी   हैं  ,
ठहरा   हुवा   बुढ़ापा   तो   बस ,  मौत   का   इंतज़ार   करे   !!
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रोशनियाँ   सर   झुकाए   खड़ी   हैं   अब   ,
उन्होंनें   भी   तो ,  अँधेरे   का   सिर्फ   इंतज़ार   किया   !!
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रौशनी   को   अँधेरे   से   लड़ना   कभी   आया   ही   नहीं   ,
बचा   के   रखती   ,  सवेरा   कभी  , अँधेरे   के   लिए   !!
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भँवरे   को   जिंदगी   में   कभी   सज़ा   न   हुयी   ,
फूल   पे   सदा   आया   इलज़ाम  ,  सर  -ऐ  -आम   , रंग   क्यों   खिलाये   तूने   ?
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चांदियों   के   शहर   में   ,  सोना   टके   में   बिका   ,
कोई   ना   बोला   गवाह   ,  के   सोना   सदा   महंगा   हुआ    !!
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ज़नाज़े   पे   उसके   रो   आया   था   वो   ,
क़र्ज़   सारे   जिंदगी   के ,  से   ,  बरी   हो   आया   था   वो   !!
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किनारों   की   थी   गलतियां   वो   सहारे   बने   ,
अब   मार   जिंदगी   भर   की   है   ,  कटना   हमेशा   का   है   !!
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गम   ना   कर   कटना   जिंदगी   भर   का   है   ,
समंदर   भी   बिन   तेरे   होता   कहाँ   ?
समंदर   में   तो   जाना   घड़ी   भर   का   है   महज़  ,
जिंदगी   तो   बसर   होगी   तेरे   साए   में   !!
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शाम   ओ   सहर   दोनों   को   तेरा   इंतज़ार   है   ,
इक   का   दिन   नहीं   कटता   , दूसरे   की   रात   !!
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तेरा   चेहरा   ग़मज़दा   क्यों   है   ? 
क्यों   परेशान   है   अपनी   गुस्ताख़ियों   से   तू   ?
मैं   तो   शिकायतें   तेरी   करता   नहीं   ,
जानता   हूँ   तेरा   राज़   हूँ   मैं   !!
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विरासतें   भी   हैं   मेरी   ज़मानें   में   ,
पर   हक़   ?  अहसान   फ़रामोश   क्या   जानें   !!
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समंदर   है   गहरा   कितना   ?
जानता   है   तो   सिर्फ   पानी   जो   तल   में   है   ,
लंबा   है   ये   जीवन   कितना   ?
जानता   है   ,  जिया   जिसने   ,  हर   पल   को   है   !!
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साथी   ज़रा   पास   तो   आ   तू   मेरे   ,
बता   उंगलियाँ   कितनी   हाथों   में   ?
ज़रा   छुवन   का   अहसास   तो   दे   ,
आया   बसंत   ,  कोई   गुल   तो   खिले   !!
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चुनावों   की   सरगर्मियां   ,  मेरे   अन्दर   भी   हैं  ,
पर   हर   पल   जो   जिया   है   मैंने   ,  सदियों   का   गुनाहगार   लगे   !!
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सितारे   भी   हैं   ,  पर   सिर्फ   रात   आने   पे   चमकते   हैं   ,
तू   भी   ठहर   ,  रात   आने   दे   ज़रा   ,
फिर   चमक   लेना   ,  मन   की   सुबह   होनें   तक   !!
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न   घबरा   तेरे   तारों   को   भी   आसमान   थामेंगा   ,
बस   पैर   ज़मीं   पर   रख   अपने   !!
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शाम   ही   है   जो   सुकूँ   देती   है   ,
दिन   को   तो   तेरे   नखरे   भी   ,  आसमान   छूते   हैं !!
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समंदर  को  तो  हिला  मैं  भी  देता  ,
पर  मछलियों  की  तरह  बेखटके  नहीं  !
मेरी  जान  तो  है  किनारों  पे  ,
किनारों  से  गिले  मिटाऊँ  ज़रा  !!

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