Tuesday, 10 January 2012

झूम  कर  चला  कोई  हवा  में  धूमता  दौड़ता  , 
बवंडर  नहीं तो  और  होगा क्या  यार ,
लसलसाती चली  फुत्कारती चली  नागिनों  की  तरह , 
तड़ित ही  तो  होगी ? है  न  यार ,
पत्थरों  को  दौड़ाया हो  भेड़ों  की  तरह , 
मचाया  हो  शोर  गड़रियों की  तरह ? पहाड़ी  नदिया  यार ,
चित्रकार  भी  जिसके  आगे  पानी  भरें  , 
शक्लें  बनाये  हर  पल  हर घड़ी  ? पागल  बादल  है यार ,
रंगे  चुनरिया  ललारियों  की  तरह ?  फूल ?
तितली ? मोर ? मोनाल ?  इन्द्रधनुष ? वसंत ? ख्वाब ?
नहीं  रे  अनाड़ी ,  मेरे  भोले  भंडारी , 
वो  तेरा  रचयिता  है  ,  मेरा  रचयिता  है , ईश्वर  मेरे  यार !!

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