Thursday, 26 January 2012


घूँट   है   आखिरी   और   तिश्नगी   है   बहुत   ,
बड़ी   हसरतों   से   जाम   को   घूरे   जाता   हूँ  !
महसूस  होता   है   जंग   पे   जाना   है   अब  ,
और   माशूक   से   विदा   लेने   की   घड़ी   आई   है  !
सोच ,  चीलों   की   तरह   दिमाग   में   फिरते   हैं  ,
और   मेरे   होश   बाकी   हैं   बहुत   तड़पाने   को  !
हौसला   मेरा   भी   और   साक़ी   का   भी   पस्त   है   अब  ,
मेरी   नज़र   जाम   पे   और   साक़ी   की   गड़ी   मुझपे   है  !
अच्छा  , संगदिलो  ,  अलविदा   कहनें   का   वक्त   आया   है   ,
ए  रूह   मेरी   , घूँट   आखिरी   तर   करनें  को   आता   है  !! 

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