मुझे दुश्मनों में लेके चलो ,
दोस्तों के अंदाज़ देख लिए ,
पीछे से ज़ख्म हज़ार मिले ,
अब सीने पे भी , दो चार ले आऊँ !
मैंने समझा था सफ़र दुश्वार न हो ,
दोस्तों को साथ , ले के चलूँ ,
हर कदम पे रोक रोक लिया ,
दोस्तों की चाल कुछ थी ऐसी !
अब दुश्मनों को देता हूँ मौका ,
शायद चाल संभल जाए मेरी ,
या तो मुझको जहाँ से दौड़ाये वो ,
या उसे दूरस्त जहाँ में छोड़ आऊँ !
मुझे दुश्मनों में लेके चलो ,
दोस्तों के अंदाज़ देख लिए ,
पीछे से ज़ख्म हज़ार मिले ,
अब सीने पे भी , दो चार ले आऊँ !!
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