चाँद सा फैशन परस्त नहीं देखा मैंने ,
हर रोज़ शक्ल नयी इक लिए आता है !
छुप जाता है अमावस के दिन इक बार ,
और चाहने वालों को तरसाता है !!
.............................
चीड़ का जंगल , घास की सरपरस्ती में बढ़ा करते हैं ,
और घास दोबारा किसी और का सरपरस्त बने ,
ये सब मंज़र ,मंज़ूर न उनको है ,
हाथ निकलते ही , पर्वत को अपना बना लेते हैं ,
और अपने ही सरपरस्त का नामों निशाँ मिटा देते हैं !!
हर रोज़ शक्ल नयी इक लिए आता है !
छुप जाता है अमावस के दिन इक बार ,
और चाहने वालों को तरसाता है !!
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चीड़ का जंगल , घास की सरपरस्ती में बढ़ा करते हैं ,
और घास दोबारा किसी और का सरपरस्त बने ,
ये सब मंज़र ,मंज़ूर न उनको है ,
हाथ निकलते ही , पर्वत को अपना बना लेते हैं ,
और अपने ही सरपरस्त का नामों निशाँ मिटा देते हैं !!
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