Friday, 27 January 2012

चाँद  सा  फैशन  परस्त  नहीं  देखा  मैंने  ,
हर  रोज़  शक्ल  नयी  इक  लिए  आता  है  !
छुप  जाता  है  अमावस  के  दिन  इक  बार  ,
और चाहने  वालों  को  तरसाता  है  !!

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चीड़  का  जंगल  , घास  की  सरपरस्ती  में  बढ़ा  करते  हैं  ,
और  घास  दोबारा  किसी  और  का  सरपरस्त  बने  ,
ये  सब  मंज़र  ,मंज़ूर   न  उनको  है  ,
हाथ  निकलते  ही  , पर्वत  को  अपना  बना  लेते  हैं  ,
और  अपने  ही  सरपरस्त  का  नामों  निशाँ  मिटा  देते  हैं  !!

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