हर वर्ष नव वर्ष का उत्साह ,
कुछ बदलेगा सोचता हूँ मैं ,
दो चार शुभकामनाएं , दो चार पटाखे,
और फिर शुरू , जिंदगी ढर्रे की वही होती है !!
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चिरागों को न डर है कोई अंधेरों का ,
अँधेरा खुद को महफूज़ कर ,
रौशनी सब बख्श दी ज़माने को !!
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सौदाई हैं हम ज़माने को ज़न्नतें बख्शते हैं ,
जहन्नुम सबको रास आ रहा है अब !!
......................................................................................खुदा खुदा करते शराब आई ,
अब वो कहते हैं परहेजी हूँ मैं !!
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बारिशों से महरूम ज़न्नतें क्या होंगी ,
मैं तो वापिस खुदा से , यही जहां मांगूंगा !!
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मेरे हाथ ख़ाली हैं फिर भी , दोनों जहाँ तुझे देता हूँ !
तू अपना पता तो दे , तेरी सूरत को तरस गया हूँ मैं !!
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घमंडी चाँद इठलाता रहा आसमानों में , बादलों को उसने अनदेखा किया !
बारिशें भी चाँद का मुंह धोये बगैर , सिमट आयीं हैं सारी ज़मीं पे मेरी !!
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चाँद समंदर में झांके और मछलियाँ आसमानों में ,
नसीब से अपने दोनों हैं हैरान ,
एक आसमान में कैद , दूसरा पानी में !!
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