आवारा हैं मेरे कदम , चलते हैं दो कदम भटक जाते हैं ,
बदनाम मोहल्लों में जहाँ , शरीफों का जाना है मना ,
घूम आते हैं , दुनियाँ की नसीहतों के ख़िलाफ़ ,
दर्द की चीखों को महसूस , करते हैं , ठिठक जाते हैं !!
………….
मंदिरों की घंटियाँ , मस्जिद की अज़ान , जिनके लिए बेमतलब है ,
दिल की आवाजों को , ध्यान से सुन , समझने की शक्ति है उन्हें ,
वो मेरी , शहद सी बोली में , छल है क्या ? जानते हैं ,
पर मेरा मान रख लेते हैं , टूटी कुर्सी पे इज्ज़त से बिठा देते हैं !!
……………
वो जानते हैं , बेमतलब का आना नहीं होता , उनके घरों में मेरा ,
या तो कोई सर्वे सरकारी होगा , नकली आंकड़ों के लिए ,
या चुनाव की दस्तक है दरवाज़े पे , बड़े जोर से आई है ,
या कहीं मर तो नहीं कोई बच्चा गया , उनकी गाड़ी के नीचे आकर ?
………………
हैरानी से मुंह मेरा वो ताके जाते हैं , उचरुंगा कुछ ,
कोई कहानी निकलेगी , मुंह से मेरे ? अंदाज़ लगते हैं वो ,
या मैं ही किसी कहानी की खोज में आया हूँ , बस्ती में ,
फिर से , शहर और सपना को फिल्मानें , जीवंत बनाने के लिए !!
……….........
या कोई चैरिटी हॉस्पिटल का प्रोपोज़ल है , या स्कूल गरीबों के नाम ?
सब्सिडी आई तो नहीं है मशीनों , उपकरणों के नाम ,
या शहर का विस्तारीकरण होना है , फ्लाईओवर बनाना है , या पार्क कोई ,
अरे भाई बोलो तो कुछ क्यों जान सुखाते हो हमारी यूं ही ,
…………………..
अब मेरे आवारा क़दमों को अपनी आवारगी महसूस हुई ,
क्यों घुस आये पहले से डरे लोगों को और डराने के लिए ?
क्यों झिंझोड़े मेरे क़दमों नें उनके और मेरे विचार ?
अब मैं समझा आवारगी ये अच्छी नहीं , जोड़े विदा लेने को हाथ ,
……………………
बड़ी मुश्किल से समझाया , के राही भटका है , राहों से ,
मैं तो आया था मंजिल का पता करने , बस्ती में तुम्हारी ,
मुझे दिख भी गयी , और भटकाव भी कम है दिल में ,
मैं कल फिर आऊँगा , तुम्हें अक्षर ज्ञान देने , और जीवन ज्ञान लेने !!
No comments:
Post a Comment