Tuesday, 3 January 2012

मैं  जानता  हूँ बंधू , तेरी  भी  इक  माँ  है  ,  मेरी  भी  इक  माँ  है ,
तेरी  माँ  का  जीवन  तो  तू  ही  आँक  सकता , तू  ही  बाँट  सकता ,
पर  मेरी  माँ  के  जीवन  में  मैं  दिन  रात  झांकता  हूँ  ,  और  आंकता  हूँ ,
जन्म  से  ही  माँ  की चुनरी  में  लिपटा ,  पीठ  से बंधा  आँख  खोलता  हूँ ,
देखता  हूँ  माँ  को  सड़क  पे  पत्थर तोड़ते ,  और झूला  झूलता  हूँ , पीठ  पे  डोलता  हूँ ,
माँ  की  पसीने  से  भीगी  पीठ  सूंघता  हूँ  ,  और  पीठ  पर  माँ  के  स्तन ढूंढता  हूँ ,
माँ  झपट  के  मुझको  गोदी  में  उतार  लाती , और  भूख  मेरी  अपने  दूध  से  मिटाती ,
थोड़ा  बड़ा  हुआ  जब  ,  डंडों  पे  लटकी  चुनरी , झूला  बन  गयी   थी   मेरी ,
और  मैं  धूप  छाया  ,  कड़क  गर्मी  सर्दी  की  ,  झेलता  चला  और  खेलता  चला ,
पर  माँ  को  मेरी  भूख  प्यास  सदा  सताती  रही ,  और  हथौडियों  की मार  उँगलियों पे  पड़ती   रही ,
थोड़ा  और  बड़ा  हुआ  और  मेरी  माएं  बदल  गयीं ,  मेरे  बहन  भाई ,मेरे माँ  बापू  बन  गए ,
मुझसे  दो  साल  बड़ा  बच्चा  ,  मेरी  पीठ  थपथपाता  ,  गोदी  में  उठाता  , कभी  गिर  मैं  जाता ,
पर  उसके  हाथ  थकने  का  नाम  नहीं  लेते  ,  और  मैं  मौन  की  जुबान  से  लोरी  सुनता  जाता ,
थोड़ा  बड़ा  हुआ  मैं  ,  अब  घुटनों  के  बल  चल  निकलता  ,धूल  मिटटी  फांकता ,
हड्डियों  को  सेंकता  ,  सड़क  पे  निकल  जाता  तब ,गाड़ियों  की  ब्रेक  से  माँ  की  चीख  निकल  जाती ,
थोड़ा  और  बड़ा  हुआ  मैं  ,  पर  स्कूल  मैं  गया  नहीं  ,  अब  धूप  से   जलती  सड़क  देखता  हूँ ,
अब  माँ  का  पेट  देखता  हूँ  कुच्छ  गोल  गोल  होता  ,  और  देखता  हूँ  उसके  माथे  पे  थकावट ,
और  कुच्छ  ही  दिनों  में  ,  इक  दुनिया  फिर  बदलती  ,  माँ  को  माँ  बनते  मैं  देखता  हूँ ,
दो  साल  बाद  अब  मुझको  भी  माँ  है  प्यारे  बनना ,  अब  बालपन  में खुद को , मैं  माँ  जानता  हूँ ,  मैं  माँ  जानता  हूँ !!

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