मैं जानता हूँ बंधू , तेरी भी इक माँ है , मेरी भी इक माँ है ,
तेरी माँ का जीवन तो तू ही आँक सकता , तू ही बाँट सकता ,
पर मेरी माँ के जीवन में मैं दिन रात झांकता हूँ , और आंकता हूँ ,
जन्म से ही माँ की चुनरी में लिपटा , पीठ से बंधा आँख खोलता हूँ ,
देखता हूँ माँ को सड़क पे पत्थर तोड़ते , और झूला झूलता हूँ , पीठ पे डोलता हूँ ,
माँ की पसीने से भीगी पीठ सूंघता हूँ , और पीठ पर माँ के स्तन ढूंढता हूँ ,
माँ झपट के मुझको गोदी में उतार लाती , और भूख मेरी अपने दूध से मिटाती ,
थोड़ा बड़ा हुआ जब , डंडों पे लटकी चुनरी , झूला बन गयी थी मेरी ,
और मैं धूप छाया , कड़क गर्मी सर्दी की , झेलता चला और खेलता चला ,
पर माँ को मेरी भूख प्यास सदा सताती रही , और हथौडियों की मार उँगलियों पे पड़ती रही ,
थोड़ा और बड़ा हुआ और मेरी माएं बदल गयीं , मेरे बहन भाई ,मेरे माँ बापू बन गए ,
मुझसे दो साल बड़ा बच्चा , मेरी पीठ थपथपाता , गोदी में उठाता , कभी गिर मैं जाता ,
पर उसके हाथ थकने का नाम नहीं लेते , और मैं मौन की जुबान से लोरी सुनता जाता ,
थोड़ा बड़ा हुआ मैं , अब घुटनों के बल चल निकलता ,धूल मिटटी फांकता ,
हड्डियों को सेंकता , सड़क पे निकल जाता तब ,गाड़ियों की ब्रेक से माँ की चीख निकल जाती ,
थोड़ा और बड़ा हुआ मैं , पर स्कूल मैं गया नहीं , अब धूप से जलती सड़क देखता हूँ ,
अब माँ का पेट देखता हूँ कुच्छ गोल गोल होता , और देखता हूँ उसके माथे पे थकावट ,
और कुच्छ ही दिनों में , इक दुनिया फिर बदलती , माँ को माँ बनते मैं देखता हूँ ,
दो साल बाद अब मुझको भी माँ है प्यारे बनना , अब बालपन में खुद को , मैं माँ जानता हूँ , मैं माँ जानता हूँ !!
तेरी माँ का जीवन तो तू ही आँक सकता , तू ही बाँट सकता ,
पर मेरी माँ के जीवन में मैं दिन रात झांकता हूँ , और आंकता हूँ ,
जन्म से ही माँ की चुनरी में लिपटा , पीठ से बंधा आँख खोलता हूँ ,
देखता हूँ माँ को सड़क पे पत्थर तोड़ते , और झूला झूलता हूँ , पीठ पे डोलता हूँ ,
माँ की पसीने से भीगी पीठ सूंघता हूँ , और पीठ पर माँ के स्तन ढूंढता हूँ ,
माँ झपट के मुझको गोदी में उतार लाती , और भूख मेरी अपने दूध से मिटाती ,
थोड़ा बड़ा हुआ जब , डंडों पे लटकी चुनरी , झूला बन गयी थी मेरी ,
और मैं धूप छाया , कड़क गर्मी सर्दी की , झेलता चला और खेलता चला ,
पर माँ को मेरी भूख प्यास सदा सताती रही , और हथौडियों की मार उँगलियों पे पड़ती रही ,
थोड़ा और बड़ा हुआ और मेरी माएं बदल गयीं , मेरे बहन भाई ,मेरे माँ बापू बन गए ,
मुझसे दो साल बड़ा बच्चा , मेरी पीठ थपथपाता , गोदी में उठाता , कभी गिर मैं जाता ,
पर उसके हाथ थकने का नाम नहीं लेते , और मैं मौन की जुबान से लोरी सुनता जाता ,
थोड़ा बड़ा हुआ मैं , अब घुटनों के बल चल निकलता ,धूल मिटटी फांकता ,
हड्डियों को सेंकता , सड़क पे निकल जाता तब ,गाड़ियों की ब्रेक से माँ की चीख निकल जाती ,
थोड़ा और बड़ा हुआ मैं , पर स्कूल मैं गया नहीं , अब धूप से जलती सड़क देखता हूँ ,
अब माँ का पेट देखता हूँ कुच्छ गोल गोल होता , और देखता हूँ उसके माथे पे थकावट ,
और कुच्छ ही दिनों में , इक दुनिया फिर बदलती , माँ को माँ बनते मैं देखता हूँ ,
दो साल बाद अब मुझको भी माँ है प्यारे बनना , अब बालपन में खुद को , मैं माँ जानता हूँ , मैं माँ जानता हूँ !!
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