Wednesday, 18 January 2012

किताबों  से  निकल  आये  पन्ने  मेरे ,
अर्थ  मुझे  हर  रोज़  नए  समझाते  हैं ,
और  मैं  ठगा  सा  ,  मुंह  बाए  खड़ा ,
अनजान  अपढ़  , महसूस  किया  करता  हूँ !!  

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अभी  तो  कलम  की  स्याही  भर  हूँ  ,
लिख  दोगे  तो  ग़ज़ल  बन जाऊंगा  मैं !
लबों को  हरकत  भर  देना दिल  से अपने ,
हर  होंठ  पे  थिरकता  नज़र  आऊँगा  मैं !
बदन  में बिजली  सी  भर  दो  नज़र  से ,
दुनियां ही  को  टेढ़ा कर  आऊँगा मैं !
घबराओ  न , मेरी  अदाओं  से  तुम ,
गम  तेरा  हूँ  ,  तेरे  ही  काबू  में  आऊँगा  मैं !!  

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