फकीरों को इश्क हो गया खुदा के नूर से ,
ओढ़ी थी जितनी ओढ़निआँ , सब ख़ाक हो गयीं !!
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जादुई चिराग रगड़ो के खुदा को तलब हुयी ,
ज़माना हो गया है , दुनियां नयी हुए !!
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तेरे खंज्जर की धार कुंद हुयी , जो सीने में मेरे गड़ी नहीं ,
या मिटटी के जिस से बना था मैं ,पत्थर की हो गयी है !!
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अश्क आँखों में मेरे आये क्यों ?
क्यों मुझे फलसफा याद आया ?
जो न बागों का मेरे था गुंचा ,
खारों ने घायल किया उसके , कैसे मुझे !!
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मेरा तराशा बुत तो बिकता है ,
उसकी बंदगी में है जहां सारा !
मैं किसी की बंदगी में झुकता हूँ ,
कौन मजहब हो ? दरयाफ्त करे जहां सारा !!
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फैलाई क्यों बाहें तूने ? मैं तो पहले से तेरे आग़ोश में हूँ !
आ ज़रा होश में आ , कस ले बाहों में मुझे !!
मैं कोई ख्वाब नहीं , के कर ले तू बंद आँखें ,
और न मेरे टूटने का डर है कोई ,आँखें खुलते ही तेरी !!
..........................................................................................................................................................गम न कर खुदा के आगे हारा तू , अब ज़माने में जीत पक्की है ,
वो तो फ़क़त इम्तिहान लेता है , मज़बूत कितने हैं इरादे तेरे !!
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बरबस उठती है निग़ाह सनम की ज़ानिब , खुदा भले नाराज़ हो जाए मेरा ,
सनम तो इक अकेला है महज़ , खुदाओं से अटी पड़ी दुनियाँ !!
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वो खुदा का करम चाहते हैं , और मैं दुआ मांगूं तेरी नज़र भर के लिए ,
उनपे खुदा की इनायत हो के न हो , मुझे हिकारत की नज़र भी काफी है !!
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