बरसता है बादल तो तरसता है जिया ,
आने वाले की नाउम्मीदी में जलता है हिया ,
मन बरसता है , आँखें भी बरसती हैं मेरी ,
और मन मोर है के रट एक ही लगाए है ,
पिया पिया ,पिया पिया ,पिया पिया !!
.........................................................................................
यार मेरे कुछ हौसला तो दिखलाया होता ,
मरने पे ही सही , मेरी आँखों में झाँका तो होता ,
मैं तो मुर्दा था , कहाँ ऊँगली तेरी तरफ उठती मेरी ,
पर गुनाहों का वज़न तेरा , कुछ हल्का तो होता !!
............................................................................................
वादों पे बुनते रहे यारों के ख्वाब ,
हासिल , रातों की स्याही के सिवा कुच्छ भी न था !!
...............................................................................................
छितरा छितरा सा है बादल मेरे ख़्वाबों की तरह ,
टुकड़ा एक पकड़ में आता है , दूजा छिटक जाता है !
चंद आहों में ही साँसों का हिसाब हो आया है ,
इक लेता हूँ ,दूजा निकल जाता है !!
....................................................................................................
मैंने देखा है बूँद को बूँद से जुड़ते हुए , समंदर इक बनते हुए ,
और देखा है मरुस्थल की तपिश से बूँद को पानी से अलग होते हुए ,
वाष्प बन उड़ते हुए , मरीचिका बनते हुए !
तुम इठलाओ न जब कुबेर भी मुट्ठी में आये ,
मैंने देखा है रावण को भी मिटटी होते हुए !
..............................................................................................................
आने वाले की नाउम्मीदी में जलता है हिया ,
मन बरसता है , आँखें भी बरसती हैं मेरी ,
और मन मोर है के रट एक ही लगाए है ,
पिया पिया ,पिया पिया ,पिया पिया !!
.........................................................................................
यार मेरे कुछ हौसला तो दिखलाया होता ,
मरने पे ही सही , मेरी आँखों में झाँका तो होता ,
मैं तो मुर्दा था , कहाँ ऊँगली तेरी तरफ उठती मेरी ,
पर गुनाहों का वज़न तेरा , कुछ हल्का तो होता !!
............................................................................................
वादों पे बुनते रहे यारों के ख्वाब ,
हासिल , रातों की स्याही के सिवा कुच्छ भी न था !!
...............................................................................................
छितरा छितरा सा है बादल मेरे ख़्वाबों की तरह ,
टुकड़ा एक पकड़ में आता है , दूजा छिटक जाता है !
चंद आहों में ही साँसों का हिसाब हो आया है ,
इक लेता हूँ ,दूजा निकल जाता है !!
....................................................................................................
मैंने देखा है बूँद को बूँद से जुड़ते हुए , समंदर इक बनते हुए ,
और देखा है मरुस्थल की तपिश से बूँद को पानी से अलग होते हुए ,
वाष्प बन उड़ते हुए , मरीचिका बनते हुए !
तुम इठलाओ न जब कुबेर भी मुट्ठी में आये ,
मैंने देखा है रावण को भी मिटटी होते हुए !
..............................................................................................................
No comments:
Post a Comment