Tuesday, 17 January 2012

उनको  हमदर्दियां  भा गयीं  दुनिया  में  इतनी  ,
के  बीमारी  से  बाहिर  आना  हुआ  मुश्किल  उनका  !!

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गम  के  पीछे  , बहुत  दिन  बाद  ख़ुशी  आई  है  ,
जैसे  धूप  खिली  हो  सर्दियों की  बारिश  के  बाद !!

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बहुत  मुश्किल  से  खींचे  हैं  पीछे  कदम  ,
अब  पलट  आवाज़  ना  दो  तुम  मुझको  !
तुम  ग़ैर  नहीं  तो  अपने  भी  नहीं  अब  ,
बहुत  दर्द  है  सीने  में  जो  तूने  है दिया !!

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फैल   तो   जाए   खुशबू   चन्दन   की   हवाओं   में  ,
मगर   गुलाब   , जूही  , चमेली   , खस   और   बाक़ी  सब  ,
बेघर   न   हो   जाएँ   घर   से   मेरे   ख्याल   रखना  !
बिखर   तो   जाने   दे   रंग   गुलाबी   चूनर   में   मेरे  ,
मगर   लाल  ,  नीला  , हरा  ,  पीला   , केसरी    और   बाक़ी  सब  ,
ग़ायब  न   हो   जाएँ   इन्द्रधनुष   से   मेरे   ,  ख्याल   रखना  !
बजने   तो   दे   फ़िल्मी   गाने   देसी   अंग्रेजी   महफ़िलों   में  ,
पर   लोकगीत   ,  ग़ज़ल   ,  क़व्वाली   ,  सूफी   और   बाक़ी   सब  ,
अनजानें   न   बने   कानों   को   मेरे   ख्याल  रखना  !
और   ख्याल   रखना   के   ख्याल   तुमको   रहे   संस्कृति   का   मेरी  ,
जो   सदा    यूँ   ही   बनती   बिगडती   रही   सदियों   से   कालान्तर   में  ,
पर   रूह   जो   मेरी   भारतीयता   की   बाक़ी   रही   ,  अब   भी  रहे  ,  ख्याल   रखना  !! 

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