Sunday, 22 January 2012


जितने   मौसम   हैं   मुझमें   समाये   हैं   ,
हर   दिन   जब   चाहे   ,  जो   चाहे   ,  मेरा   मौसम   बदलता   है  ,
मेरे   अन्दर   भी   ,  गर्मी   सर्दी   का  होता   है  अहसास  ,
बारिशों   से   भीगता   हूँ   , बसंत   के   रंग   खिलते   हैं  ,
मैं   भी   झड़ता   हूँ   कभी   ,  पत्तों   की   तरह  ,  पतझड़   में  ,
मेरे   अन्दर   भी   भावों   का   दबाव   बदलता   है   ,
उठते   हैं   बवंडर   कभी   ,  कभी   लावा   फटता   है  ,
हवाएं   मुझमें   भी   चलती   हैं   कभी   ,  ठंडी  ,  कभी   गर्म  ,
कभी   बर्फ   के   मौसम   में  ,  गर्म   चश्में   में   नहा   आता   हूँ  ,
कभी   ओले   भी   पड़ते   हैं  , मन   पर   पत्थर   की   तरह  ,
कभी   ,  मन  और  बाहर   की   आँखें   बंद   कर   ,
छतरी   की   तरह  तान   बारिश   से   बच   जाता   हूँ   ,
मैं   किसी   सन्यासी   की   तरह  , 
पक्का   घर   बना  ,  भाव   विहीन   नहीं   होता  ,
मैं   तो   कच्चे   गारे   के   मकान   में   रहते   , 
बरसातों   में   बह   जाता   हूँ  !!
  

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