जितने मौसम हैं मुझमें समाये हैं ,
हर दिन जब चाहे , जो चाहे , मेरा मौसम बदलता है ,
मेरे अन्दर भी , गर्मी सर्दी का होता है अहसास ,
बारिशों से भीगता हूँ , बसंत के रंग खिलते हैं ,
मैं भी झड़ता हूँ कभी , पत्तों की तरह , पतझड़ में ,
मेरे अन्दर भी भावों का दबाव बदलता है ,
उठते हैं बवंडर कभी , कभी लावा फटता है ,
हवाएं मुझमें भी चलती हैं कभी , ठंडी , कभी गर्म ,
कभी बर्फ के मौसम में , गर्म चश्में में नहा आता हूँ ,
कभी ओले भी पड़ते हैं , मन पर पत्थर की तरह ,
कभी , मन और बाहर की आँखें बंद कर ,
छतरी की तरह तान बारिश से बच जाता हूँ ,
मैं किसी सन्यासी की तरह ,
पक्का घर बना , भाव विहीन नहीं होता ,
मैं तो कच्चे गारे के मकान में रहते ,
बरसातों में बह जाता हूँ !!
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