घर की दीवारें हैं उदास बहुत ,
मरना बाशिंदों का रोज़ का , न अब देखा जाता !
मुरम्मत तो होती है बहुत , दीवारों की ,
जन्म से शादी से , ख़ुशी के , हर मौके से !
पर दिल की दीवारों का खड़ा होना ,
घर की दीवारों को , बढ़ा देता है !
अब तो दीवारें ही दीवारें हैं चारों तरफ ,
उनका सांस भी , घर की तरह , घुटता है अब !
हर रोज़ के झगड़ों से तो अच्छा है ,
इक बार का गिरना बदहवास , छत को लिए !
ताकि हर मालिक चुने ज़मीं नयी और ,
नया घर दोबारा बनें , नयी उम्मीद की , दीवारों को लिए !!
No comments:
Post a Comment