Thursday, 26 January 2012


घर   की   दीवारें   हैं   उदास   बहुत   ,
मरना   बाशिंदों  का   रोज़  का  , न   अब   देखा   जाता  !
मुरम्मत   तो   होती   है   बहुत  ,  दीवारों   की  ,
जन्म   से   शादी   से  ,  ख़ुशी   के  , हर   मौके   से  ! 
पर   दिल   की   दीवारों    का   खड़ा   होना  ,
घर   की   दीवारों   को   ,  बढ़ा   देता   है  !
अब   तो   दीवारें   ही   दीवारें   हैं   चारों   तरफ  ,
उनका   सांस   भी  , घर   की   तरह  , घुटता   है   अब  !
हर   रोज़   के   झगड़ों   से  तो   अच्छा   है   ,
इक   बार   का   गिरना   बदहवास  ,  छत    को   लिए  !
ताकि   हर   मालिक   चुने   ज़मीं   नयी   और   ,
नया   घर   दोबारा   बनें  ,  नयी  उम्मीद   की  , दीवारों   को   लिए !!

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