तुमको चाहत से जो चाहा , इक गुनाह कर लिया मैंने ,
अब सजा का डर , मेरे दिल को तड़पाए तो क्या कीजे !
तेरी आँखों का काजल बन के , मैं आँखों से लगूँ ,
अब अश्कों से मिल के आँख से ढलक जाऊं तो क्या कीजे !
तेरी मांग में सिन्दूर सा सज ताज बन इठला तो जाऊं ,
पर बारिशों से भीग माथे पे फैलूँ तो क्या कीजे !
सर पर चूनर का लहराता , फहराता आँचल मैं बनूँ ,
पर पागल पवन मदहोश हो उसको उड़ाए तो क्या कीजे !
तुमको चाहत से जो चाहा , इक गुनाह कर लिया मैंने ,
अब सजा का डर , मेरे दिल को तड़पाये तो क्या कीजे !!
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