बिंदिया माथे पे पहचान बंधन की ,
नाक में नथुनी नुकेल ,
कानों में बुन्दों की रोक ,
गले में कंठी की लगाम ,
कमर में करघनी का बंधन ,
हाथों में चूड़ी की गुलामी ,
और पाँव में बेड़ी पाजेब की ,
ऐसी डाल आये थे वो ,
कि सदियाँ गुज़र गयी ,
मुझे आज़ाद होने में !!
..................................................
चंद रोज़ का रोज़ा और ख़ुदा ख़ुद को कर लिया ,
मालूम क्या था ख़ुदा को , भूख होती नहीं कभी !!
.............................................................................
पचड़े जितने सब अक्ल के कारण ,
अक्ल बिना सब मौज ही मौज !!
............................................................
आजादियों को समझता रहा आज़ादियाँ मेरी ,
मालूम क्या था हद से परे ज़मीं किसी और की है !!
................................................................................
स्याह कर के मुंह को वो घर से बाहर निकले ,
क्या खबर नाराज़ बैठा हो रास्ते में कोई !
मौसम में तब्दीलियाँ बहुत हैं , देश में मेरे ,
हाथों में जूता कहीं , कहीं स्याही की बोतल है !!
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आँखें तेरी ढूँढतीं थीं ज़माना मुझमें ,
मैं ही कहीं पीछे छूट गया !!
नाक में नथुनी नुकेल ,
कानों में बुन्दों की रोक ,
गले में कंठी की लगाम ,
कमर में करघनी का बंधन ,
हाथों में चूड़ी की गुलामी ,
और पाँव में बेड़ी पाजेब की ,
ऐसी डाल आये थे वो ,
कि सदियाँ गुज़र गयी ,
मुझे आज़ाद होने में !!
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चंद रोज़ का रोज़ा और ख़ुदा ख़ुद को कर लिया ,
मालूम क्या था ख़ुदा को , भूख होती नहीं कभी !!
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पचड़े जितने सब अक्ल के कारण ,
अक्ल बिना सब मौज ही मौज !!
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आजादियों को समझता रहा आज़ादियाँ मेरी ,
मालूम क्या था हद से परे ज़मीं किसी और की है !!
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स्याह कर के मुंह को वो घर से बाहर निकले ,
क्या खबर नाराज़ बैठा हो रास्ते में कोई !
मौसम में तब्दीलियाँ बहुत हैं , देश में मेरे ,
हाथों में जूता कहीं , कहीं स्याही की बोतल है !!
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आँखें तेरी ढूँढतीं थीं ज़माना मुझमें ,
मैं ही कहीं पीछे छूट गया !!
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