मैं तो कुछ भी नहीं , कुछ भी नहीं , कुछ भी नहीं ,
और तुम हो के सर आँखों पे बिठाने की सोच लिए हो !
वक्त के धारे में इक महज़ लम्हा भी नहीं मैं ,
और तुम हो के बरसों बरस साथ निभाने चले हो !!
................................................................................
चंद आँखों को मेरा उठना लगता है धुवां ,
पर आँखें मलने के सिवा कर भी वो क्या सकते हैं !!
आग से खेलना उनको कभी आया ही नहीं ,
और मुझमे है जो आग ,कहीं बाहर से नहीं आई है वो !
दिल ज़िगर भस्म हुआ तब कहीं शोला भड़का है ,
अब कहीं हस्ती मिटे मेरी तो चैन उनको मिले !
मेरी आग से खतरा है उन्हें बारूद भरा जिनके दिल में ,
वर्ना ये तो रौशन करे ,सदियों से बुझे बिन तेल के चिरागों को भी !!
और तुम हो के सर आँखों पे बिठाने की सोच लिए हो !
वक्त के धारे में इक महज़ लम्हा भी नहीं मैं ,
और तुम हो के बरसों बरस साथ निभाने चले हो !!
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चंद आँखों को मेरा उठना लगता है धुवां ,
पर आँखें मलने के सिवा कर भी वो क्या सकते हैं !!
आग से खेलना उनको कभी आया ही नहीं ,
और मुझमे है जो आग ,कहीं बाहर से नहीं आई है वो !
दिल ज़िगर भस्म हुआ तब कहीं शोला भड़का है ,
अब कहीं हस्ती मिटे मेरी तो चैन उनको मिले !
मेरी आग से खतरा है उन्हें बारूद भरा जिनके दिल में ,
वर्ना ये तो रौशन करे ,सदियों से बुझे बिन तेल के चिरागों को भी !!
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