Sunday, 8 January 2012
मैं चलूँ किस ओर साथी तू बता , जीवन की संध्या हो चली है और मंजिलें अभी तय नहीं !
तुम हंसोगे कह रहा क्या है , रात अब होने को है और अब बचा क्या वक्त के पास बाकी !
पर उम्मीदों को कहाँ मैं छोड़ आऊँ रहबर मेरे , कोई कहानी ही सुना या झूठ ही मुझे तू बहला ,
"झुनझुनों को छोड़ साथी अब राम नामी ओढ़ ले , मंजिलों की अब न ज़रुरत , श्याम का रंग ओढ़ ले ,
"नाम से भी नफरतें हैं उनको अपने ए जहां ,
"जब भी अकेले बैठ मन पूछता है सच बता ,
क्या पाया है तुमने और " जय " खोया है क्या ,
"तेरी ओट कर भी लेता तो क्या होता ,
"ख़्वाबों में मेरे महफिलें हैं और मैं अकेला ,
"खुदा तो चाहता है ज़न्नत ज़मीं पे उतर आये मेरी ,
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